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॥ नवपदपूजा
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वमांहि रमतोरे । लेच्या शुद्ध अलंकस्यो । मोह बने नवि जमतो रे बीर० ॥ १३ ॥ ॥ लोक ॥
विमल केव० । परम परमा० चारि०
॥ इत्यष्टमी कलवा पूजा
॥ अथ तप पूजा ॥
॥ दोहा ॥ कर्म काष्ठ प्रति जालवा परतिख अग्नि समान तपपद पूजो जवि सदा । निरमल धरिये ध्यान ॥ १ ॥
॥ बंद ॥
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ति
कम्महु मुन्मूलन कुंजरस्स । नमो नमो तवो नरस्स । प्रणेग लीण निबंध णरस । दुस्सज्ज प्रत्याणय साहणस्स ॥ १ ॥ इय नव पय सिद्धिं लठि विजा समि यं । पयप्रिय समवग्गं ज्ञीति रेहासमग्गं । दिशिवइ सुरसारं खोणि पीढा वयारं । विजय विजय चक्क सिक् नमामि ॥ २