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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९) । नवपदपूजा . .. विधै जे कस्यो आतमा जजा वाले । घणा कालनी कर्मराशि प्रजालें। अनेका सुलही लहै यत् प्रनावें । कमायुक्त ए साधु महानं द पावे॥ ३ ॥ वली वाह्य अप्निंतरें जेद निवं जिनेंदा गमें वर्णव्यू जे बिलं । शनासं स्वनावें तिलोके सुबंदं । नमूते प्रमोदे तपः पद मनिंदा ॥४॥इति जिनवरदं नक्तितो ये स्तुवंति । परम पद निधानं मानसे संस्म रंति । परनव इह वा श्रीपालव मानवानां प्रनवति किल तेषां चार कल्याण लक्ष्मीः॥ ५ ॥ विकालिक पणे कर्म कषाय टाली। निकाचित पणे बांधिया तेह वाली । कह्यो तेह तप वाह्य शभ्यंतर दुने दे। क्षमायुक्त निर्हेतु दुर्ध्यान दे ॥६॥ होइं जास महि मा थकी लछि सिछि । श्वांबक पणे कर्म श्रावरण शुछि । तपो तेह तप जे महानंद हेतै। होइं सिछि सीमंतिनी जिम संकेतै॥७ इसा नवपद ध्यान में जेह ध्यावें । सदानंद चिद् पता तेह पावें । वली ज्ञान विमलादि गुणरत्न धामा । नमो तेह वृंदा सिश्चक प्रधाना॥ इम नवपद ध्यावें । परम शानंद - - - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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