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पां०क०पू०॥
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सुर कुमरी वरषाई रे ॥ होमकरी रदापोटरि या। जिनवरकरै बंधाई रे दे०॥ ७ ॥ मंगल गावत जिनजग जननी । निजगृह माहेंठाई रे सफलनयो निजातम जाणी। दिशकुमरी घर शाई रे दे० ॥८॥
॥दोहा॥ अतिहि शधिक नच्छवकरी । गइकुमरी निजथान ॥ इंदहिवें उच्छव करै । जन्म समय जिन जांण ॥ १ ॥ ॥ रागगौकी सांऊसमें जिनवंदो एचाल ॥
आजउबव मन नायो रे। देखोमाई॥ ज गजननी जिनजायो रे देखो शा०॥ त्रिनुवन मांहि प्रकास नयो है। इंदासन थररायो रे । दे० शा० ॥१॥ भवधि ज्ञान धर जिनजी कुं निरखत । हदय कमल जलसायो रे॥ह रिणेगमेषी इंद ऊकमत। घंटसुघोष घुरायो रे दे० ॥ २॥ वनठुन नवररूप मनोहर। सु र समुदय मननायो रे॥ सुरकुमरी वरनूषण नूषित। अदनुत रूप वनायो रे दे० ॥३॥ नवनव यानवाहनरच सुरवर । सुरगिरिशिख रेंआयो रे॥ चौसठ इंद करत अति उच्छव।
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