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॥चौवीसजिनपूजा ॥
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णी । मनहरणी कहिवायरे ॥ चंदविमलशि वसिधिनिधि धरणी। वरणीकिण विधजाय रे पि० ॥७॥ इतिविंशति स्थानकारात्रिका ॥॥ अथ चौवीसजिन पूजा ॥
॥दोहा॥ प्रणमी श्रीपारस विमल । चरण कमल सुखदाय ॥ शषिमंगल पूजन रचुं । बरबिध जूचितलाय॥१॥नंदीश्वर मंदरगिरें। शाश्व त जिनमहाराज ॥ घरचें अफबिध पूजसुं॥ जैसे सऊसुरराज ॥ २ ॥ तिम चित जिनपति गुणधरी । श्रावक समकितधार ॥ बिरचैं जि न चौवीसकी। अफबिध पूज उदार ॥३॥
॥ गाथा ॥ सलिल सुचंदन २कुसुमनर३। दीवगकरणंच ४५वदाणंच५॥बर अरकत६ नेविज७। सुन्न फल पूजाय पठविहा ॥१॥ शमविध पूजा करणं सुणिये सूत्रमकार ॥ जे नविबिरचैं प्र नुतणी । ते पावें नवपार ॥२॥
॥दोहा॥ प्रथम जिनेश्वर तिम प्रथम । योगीश्वर नरराय ॥ प्रथम नये युगादिमें। सकलजीव
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