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॥ विस्था० प्रा० ॥ (२०)
बीसपदकी बिबिध पूजन विधितणीं रचनां करी ॥ ५ ॥ इतिश्री बिंशतिस्थानकस्तुति ॥ जियाचतुरसुजाणनवपदके गुणगायरे ॥ ॥ इस चाल में छारती ॥
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पिया विंशतिधान मंगलयारति गायरे सुमतिप्रिया कहैं चेतनपतिकों निसुण बचन मननायरे पि० ॥ १ ॥ यदि निजगुण परि णति तुमचहिये । तिणको एह उपायरे पि०
रिहंत सिद्ध आचारज पाठक साधु सकल समु दायरे पि० ॥ २ ॥ इत्यादिक विंशति पद समरण जवनय हरण विधायिरे । एह आरती तिवारती । अनुपमसुर सुखदाय रे पि० ॥ ३ ॥ जैसेंनगतें करय प्रारती । स कलसुरा सुररायरे ॥ तैसेंजवितुमे करोारती एपदगुण चितलायरे पि० ॥ ४ ॥ पंचप्रदी पसें करयचारती । जेनितचित उलसायरे ॥ तेलही पंच चिदानंद घनता । अचलअमर प दपायरे पि० ॥ ५ ॥ पंच प्रदीप खंति ज्योतैं । दुर्मति तिमिर बिलायरे ॥ एहछा रती तुरत तारती । नवजल निपतित धा यरे पि० ॥ ६ ॥ पदजिन हरष तणी एकर
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