SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५० www.kobatirth.org | नवपदपूजा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) ध्यान । अरिहंत पद पूजा करो । निज २ सगति प्रमाण ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ ढाल ॥ तीजे नव वर थानक तपकरि जिण बां ध्युं जिन नाम । चोसठ इंद्र पूजित जे जिन । कीजे तास प्रणाम रे ॥ १ ॥ जविका सिञ्चक पद वंदो जिम चिर काल यानं दो रे ज० ॥ उपशम रसनो कंदो रे ज० ॥ रत्न त्रयीनो वृंदोरे ज० | बंदी नें खानंदो रे ज० ॥ सेवे सुर नर इंदो रे नवि० ॥ १ ॥ जेहनें होइ कल्याणक दिवसे । नरके पिण उजवालुं । सकल अधिक गुण अतिशय धारी ते जिन नमि घटालुं रे ज० ॥ सि० २ ॥ जे तिहुं नाण समग्ग उपन्ना | जोग क रम खीण जाणी । लेइ दीक्षा शिक्षा दिये जन नें । ते नमिये जिन नाणी रे ज० ॥ सि० ॥ ३ ॥ महा गोप महा माहण कहिये । नियामक सत्य वाह । नृपमा एहवी जेहनें बाजे । ते जिन नमिये उबाह रे ज० ॥ सि० ४ ॥ याठ महा प्राति हारज बाजे । पैंतीस गुण युत वांणी ॥ जे प्रतिबोध करे जग जन
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy