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॥ पां००पू० ॥
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कहें पदपंकज प्रणमुं। जयसब दूरनिवारो तु० ४॥ पांचरूपकरि प्रनुजीकुं लावें। पांफुगव न सिणगारो माई ॥ चोसठ इंद्र महोत्सव करिहैं। पूजन अष्टप्रकारो माई ॥५॥
॥दोहा॥ पंचरूप कर इंद्ध जिन । पंगवन लेजा य ॥ सिंहासन उबरंग गहि । स्नात्र करें सुरराय ॥१॥ ॥ इतनोंगुमाननकरियेबबीलीराधाहए०॥
जिनजीको पूजन करिये। हारे होरंगीले श्रावकहो जि० ॥ व्यन्नाव बऊनेदेकरतां। नवसागर निसतरिये जि० ॥ १ ॥ गंगाजल चंदन पुष्यादिक। शमविध मंगल धरिये ॥ जावविशुझे जिनगुणगावो। नाटक नवनव क रियें जि० ॥ २ ॥ बऊबिध प्रजुकी नक्ति र चावत । वर्ननकरन नतरिये ॥ वोशानंद दे खें सोइजाने । दुखसब दूरेहरियें जि० ॥३॥ पूजनकर प्रनकं घरल्यावे। आतम पन्यैनरिये करअठाही महोत्सव शावत । सबसुर मिल निजघरिये जि० ॥४॥ इतिश्री जन्मकल्या णके ज० श्री शष्ठ व्यं स्वाहा ॥
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