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॥ वि० स्था० पू०॥
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दिवा । ए संयम निसित कुठार ए हां० ॥ ज्ञान परंपर करण छै । शमृतपदनों हित कार ए हां० ॥ ४॥ चरण अनंतर करण छ। निर बाण तणों निरधार ए हां। सरब विरति सुध चरणसे पामें रिहंत पद सार ए हां०॥५॥ वरस चरण पर जायमें। अनुत्तर सुख अति कम होय ए हां० । सतर १७न्नेद चारित्रना। कहिया जिन शगम जोय ए हां० । देश थी सम संयम विर्षे। उजलता अनंत गुण जाज ए हां० । अरुण देव सेवी चरणने । न ये जगगुरु जिन महाराजए हां० ॥ ७ ॥
॥काव्य ॥ कम्मोघ कतार दवानलस्स । महो दयानं द लयाजलस्स । विन्नाण पंकेरुह काणणस्स णमो चरितस्स गुणाषणस्स ॥८॥झी श्री चारित्राय नमः ॥ ११ ॥ ॥ इति एकादश पदे श्री चारित्र पूजा ॥
॥दोहा॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवी । काम कलश श्वधार । व्रम्हचर्य इण सम कह्यो । कामि त फल दातार ॥ १ ॥ जिम जोतिसियां र
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