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॥वि० स्था०पू०
(११)
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मलता चणस्स ॥ सुधम्म जुत्तस्स दयास्यरस णमोणमो सविणया लयरस ॥८॥र्नुहोत्री विनयाय नमः १० इति दशमपदे श्रीविन यपूजा ॥ १० ॥
॥दोहा॥ इग्यारमपद नितनमुं । देवासरव चारित्र पंकमलिनता दूरकरि।चेतनकरे पवित्र ॥१॥ एह चरण सेवन करें । रंकथकी सुरराय ॥ तीन जगतपति पददिये । जसु सुरनर गुण गाय ॥२॥ ॥ राग सारंग बावन चंदन घसिकुम०एचाल ॥
चरण सरण मुऊमनहस्यो। सुखकरण ह रण घनपापए। हांहो रे वाला ॥ एहचरण ज लधरहरें । अज्ञान तरुणतर तापए हां० १ पाठकषाय निवारतां । देशविरत प्रगटजवें खासए हां० । चारकषाय निवारिया । सम विरत लहै गुण वास ए हां० ॥ २ ॥ इगवा सर सेव्यो थको। सुधसरव संवरचारित्रए हां० परमानंद घनपददिये । सुरलोक जनि तसुखचित्रए हां ॥३॥ नवनय तरुगण
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