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। नवपद पूजा ॥
सि० ॥ ४ ॥ लोक उरध शध तिर्यग ज्योति प। वैमानिक ने सिछि । लोक अलोक प्रगट सब जेहथी । ते ज्ञाने मुफसिछिरे न० सि०
॥ ढाल ॥ ज्ञानावरणी जेकर्मचै। खयउपशम तसथा येरे । तोहोय एहिजशतमा । ज्ञान प्रबोध ताजायेरे वी० ॥५१॥
॥श्लोक ॥ ॥ विमल नहीपरमपरमात्मनेज्ञान० ॥
॥ इतिश्री सप्तम ज्ञानपद पूजा ७॥ .
॥ अथाष्ठम चारित्र पद पूजा ॥
॥दोहा॥ शष्टमपद चारित्र नों पूजो धरी उमेद । पूजन अमुन्नव रस मिलै । पातिक होय उ द॥१॥
शारा हिया खंडिअ सक्किअस्स । नमो नमो संयम वीरिशस्स । सज्जावणा संग
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