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॥ नवपदपूजा ॥
नव्यनमो गुणज्ञाननें। स्वपरप्रकाशक ना वेंजी। पर्यायधर्म अनंतता। दानेद स्वना वेंजी न० ॥ १ ॥
॥Jटक ॥ जेमुख्यपरणित सकलज्ञायक । बोधवास विलासता । मतिआदि पंचप्रकारनिर्मल । सिछसाधन लंछता । स्याहादसंगी तत्वरंगी प्रथम नेद शनेदता । सविकल्पनें अविकल्प वस्तु । सकल संशय व्दता ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥ नक्ष शनद न जेविन लहियें। पेय पेय विचार । कृत्य अकृत्यन जे विन लहिये ज्ञानते सकल आधाररे न० सि० ॥१॥प्र थम ज्ञान में पीछेशहिंसा। श्रीसिझांतेन्नाष्यं ज्ञान ने वंदो ज्ञान मनिंदो । ज्ञानीये शिवसु खचाख्यु रे न० सि० ॥ २ ॥ सकलकियानो मूलजेत्रछा । तेहनूं मूलजे कहिये । तेहज्ञान नितनित वंदीजै। ते विन कहो किम रहिये रे न० सि० ॥ ३ ॥ पांचज्ञान मांहि जेह सदा गम । स्वपर प्रकाशक तेह । दीपकपर त्रिनु वन उपकारी। वलिजिम रविशशिमेहरे न०
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