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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) वि० स्या० पू० ॥ लग्ग सुपावणस्स ॥ शमंगलानो कुहदुद्दवस्स णमोणमो निम्मल सत्तवस्स ॥ १० ॥ झा श्री तपसे नमः ११ इति चतुर्दश पदे श्री तप पूजा ॥ १४ ॥ ॥दोहा॥ गौतम गणधर पनरमें। पदसेवो सुप्रसन्न वलिसऊ जिन गणधर नमो। चवदैसें बाव ल ॥१॥ दानसकल जग वशकरें । दान ह रेंदुरितारि॥ मनवांबित सऊ सुखदियें। दा न धरम हितकारि ॥२॥ ॥रागसोरठ तेरी प्रीति पिलानी हो पनरम पद गुणगाना होनवि पनरम०॥ नावधरी करिये मनरंगें । परम सुपा दा ना हो नवि पनरम० ॥१॥ पात्रकह्या व्य नाव दुनेदें। दव्यलबन एजानाहो नविप०॥ सर्वोत्तम उत्तमऊवें नाजन । रतनकनक रू पाना होनवि प०॥२॥ मध्यम पात्रकही जे एहवा। ताम् धातु निपजाना हो नवि प० पात्रलोहादिक अपरजातिना। तेहजघन्य क हाना होनवि प० ॥३॥नावपात्रनो लच्छ न कहियें। सुनिये सुगुण सयाना हो नविप० - - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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