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॥ नं० श्व० पू० ॥
नराज ॥ शमविधि पूजाये सदा । भर - चीजे हित काज ॥६॥ प्रथम पूज जिन राजनी। विमल जलैं नर पूर ॥ करिये न्हवण सदानवी। हो
य सकल दुख दूर ॥ ७॥ ॥ कुंदकिरण शशिऊजलोजी देवा एचाल ॥
मिलिकरि सकल सुरासुरा रेवाला । नि जसेवक सुर पासें रे ॥ दीर जलधि मागध थकी रे वाला। सिंधुनदी गंगासें रे ॥१॥ वलि वरदामसुतीर्थसें रेवा० । विमल सलि लशणावें रे ॥ मणिकनकादि कलश नरी रे वाला । अषधि कुसुम मिलावें रे ॥ २॥ इं दादिक सऊसुरगणा रेवा० । शाश्वत जिन न्हवरावें रे ॥ विमल सलिल धाराकरी रेवा कमति तापने गमावे रे ॥३॥ इणपरि जे जगतेनवी रेवाला । न्हवणकरै जिमअंगें रे तेसुरवर सुख अनुनवी रे वा० । लहै शिव पद मनरंगे रे ॥ ४ ॥ व्यपूज करि सुरवरा रेवा० । करै जिणंद गुणगानारे ॥ कुशल कु मुद विकसायवारे वाला। प्रनु शिवचंद स माना रे ॥५॥
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