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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥नं० श्व० पू०॥ १५७ - - - - ॥काव्य ॥ दुरितदाव घनातप वारणं । सकलनाव विकासनकारणं ॥ जगतिन्नव्य नवोदधि तार णं । जिनगणं स्नपयाम्य मलै ऑलैः ॥१॥ झी श्रीअर्ह परमात्मन्यो निंतानंतज्ञान श क्तिभ्यः प्रणतसकल सुरासुरेंद्र वृंद विहित नक्तिभ्यः कठिन कर्म शालमालो न्मूलन चरणेन्यो जन्मजरा मृत्युनिवारण कारणेच्यो नंदीश्वराष्टम द्वीपगत पूर्वीजन गिरिशिखर स्थ सिहायतन मंझनायमानेभ्यः श्रीरिषनान न चंदानन वारिषेण वर्षमाना निधानाष्ठो त्तरैकशत शाश्वत जिनेन्यो जलं यजामहे स्वाहाः इति प्रथमजल पूजा ॥ १ ॥ ॥दोहा॥ द्वितीयपूज जिनराजकी । करऊ नक्तिन रसार ॥ वरसुगंध दुव्य करी। तरऊसिं धु संसार ॥१॥ ॥ मेघवरसैनरी पुप्फवादलकरी एचाल ॥ नक्तिधरी नविजन पूजमहाराजकुं। एह वरगंध व्यं सदाई ॥ विमल घनसार चंदन सरसमृगमदा। कुंकमें कर विलेपन मुदाई न. - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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