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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ बोटी नवजा॥ - रपामी सदा सिछ बुझा॥त्रिनागो न देहा वगाहात्म प्रदेशा। रह्या ज्ञानमय जात वर्णा दि लेशा । सदानंत सौष्या श्रिता ज्योति रूपा । शनाबाध अपुनर्नवादि स्वरूपा ॥ ॥ ढाल ॥ सकल करमनों दाय करी । सिझ श्व स्था पाई रे गुण इगतीस विराजता । नपम जस नहि काई रे ॥ ६॥ मनसुध सिझपद बदिये क० शं० । जनममरण दुख नीगम्या छातम चिदरूपी रे । अनंतचतुष्टय धारता अव्यावाध अरूपी रे म०॥७॥जास ध्या न जोगीसरू । करे राजप्पा जा रे। जव २ संच्या जीव। कठिन करम ते का रे ॥ म० ॥८॥ ध्यान धरता सिझनों पूजंतां मन रागें रे । अविचल पदवी पाईये। कह्यो जिनवर व नागें रे म० ॥ ९ ॥ ॥ श्लोक ॥ तस्यपूर्व दलेसिछान् । सम्यक्तादि गुणा मकान् ॥ निः श्रेयस पदंप्राप्तान् । निदधे नक्तिनिर्नरः ॥ १॥ तत्पूर्वपत्रे परितः प्रण ष्ठः। दुष्टाष्ठका नधिगम्यशुहिं॥ प्राप्ताबरा - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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