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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (8) ॥ नवपद शारती ॥ ॥ बिमल केवल० नी तपसे ॥ ॥ इति तप पद पूजा ॥ ९ ॥ ॥ इति वृहनवपद पूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ नवपद जी की आरती ॥ जय जय जग जन बंबित पूरण सुरतरु अभिरामी । प्रतम रूप बिमल करतारक अनुभव परिणामी ज० ॥ १ ॥ जय २ जग सारा । नविजन धारा ॥ रति पार उतारा | सिद्ध चक्र सुख कारा ज० ॥ २ ॥ जग नायक जग गुरु जिणचंदा । जज श्री नग वंता । तमराम रमा सुख जोगी । सिद्धा ज वंता ज० ॥ ३ ॥ पंचाचार दिये श्राचारज युगवर गुण धारी । धारक बाचक सूत्र ‍ रथना पाठक जव तारी ज० ॥ ४ ॥ सम दम रूप सकल गुण धारक मोटा मुनि राया दरसण नाण सदा जय कारक | संजम तप गाया ज० ॥ ५ ॥ नवपद सार परम गुरु जाषै । सिद्धचक जयकारी । इह नव पर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ७५
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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