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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ नवपदपूजा ॥ . (१) है पहिलो मंगल । वरणवियो जे ग्रंथे । ते तप पद त्रिकरण नित नमिये । बर सहाय शिव पंथे रे न०॥ ५॥ इम नव पद थुण तो तिहां लीनो । ऊवो तनमय श्री पाल सुजस विलास ने चौथे खं। एह इग्यार मी ढाले रे न०॥६॥ ॥ढाल ॥ इच्छारो| संबरी। परणित समता योगें रे तपते एहिज आतमा । बरतें निज गुण नोगें रे वी० ॥१॥ शगम नोआगमतणो । नाव ते जाणो साचो रे । आतम नावे थिर ऊवो पर नावें मत राचो रे वी० ॥२॥ अष्ट स कल समृहिनी। घटमांहें रिछी दाखी रे । तिम नवपद रिछ जाणज्यो । हातमराम में साखी रे वी० ॥३॥ योग शुसंख्य कें जिन कह्या नवपद मुख्य ते जाणो रे । एह तणे अवलंब नें । शातम ध्यान प्रमाणो रे वी० १॥ ढाल बारमी एहवी। चौथे खंभें पूरी रे वाणी बाचक जस तणी । कोइ न अधूरी रे वी० ॥५॥ ॥ लोक ॥ - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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