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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ ॥ पां००पू०॥ (५. वरेंए ॥ नरनारीतिर्यग विद्याधर। द्वादशवि धपरिषदलरें ए २० ॥ ४ ॥ नविजनधर्मतण उपदेसें । जोजनगांमिमधुर गिरेए॥ प्रतिबो धितचोमुख श्रीजिनवर ॥ निजश्नाषाशनु सरैए अ० ॥५॥ वासोपकीजै ॥ ॥दोहा॥ प्रगटपणेनुकीपना। प्रगटप्रकासकरूप॥ प्रगटीपनुतापरमसम । परमातमपदनूप॥ ॥बिगीकौनसुधारैनाथबिनवि० एचाल में। मंझलनविकमल विबोधन । दिनकरस मजिनरायारे नू० । अणजतें इकफोक शमर पद। पंकजनमर लुनायारे नू० ॥ १ ॥ ग्रा मनगरपुरपण बिचरत । त्रिभुवन नाथकहा यारे ॥ चौसठइंदकरै जाकीसेवा । तनमनसे लयलायारे नू० ॥ २॥ इंशणीमिल मंगल गावत । मोतियनचौक पुरायारे ॥ सर्वजीव हितकारकपनुजी निश्रेयससुखदायारे नू० । ३ ॥ नवजलनिधि निर्यामकजगगुरु । तारक सकलकहायारे । शासनमायक संघसकलकुं॥ प्रवचनतत्वसुनायारे नू०॥ ४ ॥ अनंतगुणा करपूनुजीकी महिमा। वरनेकोकबिरायारे । For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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