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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ ॥चौं० जि० पू०॥ (२४) । - ॥ रागतेजतरणिमुखराजेंप्रनूजीको एचाल ॥ चरमबीरजिनराया। हां रेजिनराया मेरे प्रनुचरमबीर जिन० सिझा रथकुलमंदिरधज सम । त्रिसलाजननी जाया । निरूपम सुंदर प्रनुदरणतें । सकललोकसुखपाया मे०॥ १॥ बामचरणअंगुष्टफरसतें। सुरगिरिवर कंपाया इंदनूतिगणधर मुनिजन । सुरपति बंदितपा मुख या मे० ॥ २ ॥ बरतमानसाशनसुखदाया॥ चिदानंदघनकाया। चंकिरण गणबिमल स चिरकर । शिवचंदगणि गुणगाया हां० ॥३॥ बरसनंद मुनिनाग धरणमित। हितियाश्विन मनन्नाया। धवलपद पंचमितिथिशनियुत॥ पुरजयनगरसुहाया मे०॥ ४ ॥ श्रीजिनहर्ष सूरिसूरीश्वर । बरखरतरगडराया। केमकि निशाषागणिनूषण रूपचंदनवझाया मे० ५ महापूर्बजसु नूरिनरेस्वर । बरखरतर गबरा या। तासुशीसबाचक पुन्यशीलगणि तसुशी प्यनामधराया मे०॥६॥ समयसुंदरअनुग्रहि शषिमंझल । जिनकीसोजसवाया । पूजरची पाठकशिवचंदने । आनंदसंघबधाया मे० ७ ॥ इति रिषिमंगल पूजा संपूर्णा ॥ - - - - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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