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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९) वि० स्था० पू० ॥ १०९ ॥ राग कामोद चंपक केतक मालती एचाल॥ जिनदरसण मुझमनवस्योए । शइयोमन वस्योए । उपजत परमशानंद । जिनदरसण दरसणदिये । विमल नाण तरकंद ॥ १ ॥द रसण मोह रिपु जीतिया ए अ० । वरदरसण उलसंत । दरसण घट परगट ऊवां । नविय ण नव ननमंत॥२॥जिनवर देव सुगुरु व्र तीए । केवलि कथित जिनधर्म । तीन तत्व परिणति रमें । ते दरसण करेंशर्म ॥३॥ जिन प्रनु वचनो परिसदाए १० । थिर सरदहण धरंत । इण लक्षण तै जानिये । समकित वंत महंत ॥ ४ ॥ इग १ दुग २ ति ३ चउ ४ शर ५ दस १० विहाए। सतसठि ६७ नेदवि चार । वलि पररीति समकित नण्यो दुख्य नाव परकार ॥ ५॥ व्यजिन दरशण कह्यो ए। नावें समकित सार । द्रव्यत दरशणना वतो । दरशण कारण धार ॥६॥ द्रव्यदरस ण यदिगतवलीए २०॥ तदपि उत्तर हित कार शयं नव जिनदरसणें। पायो दरसण सार ७॥ दरसण विण किरियाहताए १० अंक विना - - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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