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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११० " विं० स्था० पू० ॥ जिम बिंदु | वहिणियों विनचंदिका । वा सरमें जिम इंदु ॥ ८ ॥ हरिविक्रम नृप सेवतो ए प्र० । दराण पद अभिराम । पद श्री जिन हर धस्यो ॥ बधतै शुभ परिणाम | ८ | ॥ काव्य ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (6) अनंत विनाण सुकारणस्स । णंत सं सार विदारणस्स ॥ णंत कम्मावलि धंस णस्स । णमो २ निम्मल दंसणस्स ॥ १ ॥ झी श्री दर्शनाय नमः ॥ ९ ॥ इति नवम पदे श्री दर्शन पूजा || ॥ दोहा ॥ विनय भुवन रंजन करें । विनये जस वि सतार ॥ विनय जीव नूषित करै । विनयें ज य जय कार ॥ १ ॥ विनय मूल जिनधर्मनों । विनय ज्ञानतरु कंद ॥ विनय सकलगुण से हरो । जय जय विनय सनंद ॥ २ ॥ ॥ रागसामेरीपूजोरीमाईजिनवर यंगसुगंधै ॥ For Private And Personal Use Only ** ध्यावोरीमाई विनय दशम पद ध्यावो । पंचद दस १० विध तेरस १३ विध । बा वन ५२ नेद गणेसै ॥ बासठि ६२ भेद कह्या
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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