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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (५) www.kobatirth.org ॥ पां०क०प्र० ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९१ सुंदरगणि । अमृत समुद्र सुन्नाजै ॥ पाठ कविजय विमल प्रभुकेगुण | गावत घनजि मगाजें पू० ॥ ७ ॥ हंसविलास प्रवरगणिव रकी । प्रेरणिया सुसमाजें । श्रीजिन वरकी स्तवनाकीधी । धर्मपूजावन काजें प्र० ८ ॥ की प० नं० जन्मजरामृत्यु मिवारकेच्यः श्री मज्जिनेंप्रेच्यो निर्वाणकल्याणके जलंचंद० यजामहे स्वाहा ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ कलशपूजा राग मालवी गौळी ॥ सुनध्यारती प्रभुकी उदारचित्तें । करोजवि करसालरे ॥ प्रथमधूप सुगंधजिनकुं । उखेवो जिननालरे सु० ॥ १ ॥ जाल निजकर तिलक सुंदर । पहरपुष्प सुमाल रे । दक्षिणकर जि न राज जूके । करावर्त्त सुधाल रे सु० २ ॥ यथासगतें सुनतें । करोदिल पुसियालरे दुव्यावें विविधपूजा ॥ नविकनाव विला सरे सु० ॥ ३ ॥ गुणानंत महंतगावो । प्रनू परम दयालरे || जन्मसफली करो नविजन कहैपाठक बाल रे सु० ॥ ४ ॥ ॥ इति श्रारती ॥ ॥ इति कल्याणक पूजा ॥
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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