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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (१) www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ बोटी नव०जा ॥ ७७ लें ॥ ३ ॥ जिके तीर्थकर कर्म उदयें करी नें । दिये देशना नव्य नें हित धरी नें ॥ सदा आठ महापाoिहेरें समेता ॥ सुरे सें नरे सें स्तव्या ब्रम्ह पूता ॥ ४ ॥ कस्पाघा तिया कर्म च्यारे अलग्गा । नयो पग्रही च्यार के जे विलग्गा ॥ जगत् पंच कल्याण के सौप्य पामें । नमो तेह तीर्थंकरा मोद कामें ॥ ५ ॥ ॥ दोहा ॥ परम मंत्र प्रणमी करी । तास धरी उर ध्यान ॥ अरिहंत पद पूजा करो । निज २ सक्ति प्रमाण ॥ For Private And Personal Use Only ॥ ढाल ॥ तीजे नव विधि सों करी । बीसस्थानक तप करिनें रे ॥ गोत्र तीर्थंकर बांधियो । समकित सुधमन धरिनें रे ॥ १ ॥ छरिहंत पद नितवंदिये करम कठिन जिमबंप्रिये रे छां० ॥ जनम कल्याणकने दिने । नारकीसु खियायः वें रे । मतिश्रुतश्वधिविराजता । ज सुनुपमकोई नावें रे ० ॥ २ ॥ दीवालीधी सुमनें । मनपर्यव खादरियो रे ॥ तपकरि
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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