________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७०
प
०क०पू० ॥
(9)
--
॥ ढालतेहीज ॥ विनकारण कारजनही हां रेका०ए। एसब लोकप्रसिछालावनिक्षेप प्रधानता। कारज रूपेंसिह ॥ २ ॥ विनाकार दुव्यनो हां०
० । नऊवें थापन सिछ ॥ नामविना आ कारनो । प्रगट पणे नविबुछ॥३॥ नामा दिक कारणसही हांका० इनविन नावन होय । नावविशु? जिनतणी पूजकरो सऊ कोय ॥ ४ ॥ बिवहारै निश्चय लहै हा०नि० कारण कारज होय ॥ पावक शालाकमकरी। सोधचढे सऊकोय ॥५॥
॥दोहा॥ ज्ञानकला कलितातमा। लोकालोक प्रका श ॥ व्यापक नावें थिर रह्यो । गुछ वि कास विलास ॥१॥
॥राग सारंग ॥ हांहोरेदेवा जोतिसकल जिनराजनी।स ऊलोकालोक प्रकास ए ॥ हांहोरेदेवा राजत श्रीजिनराजजी। वांणी प्रवचन शुलवासए१ हांहोरेदेवा मात नमुं नित सारदा । गुरुपंच कल्याणक सारए ॥ हाहोरेदेवा तीर्थ करना
For Private And Personal Use Only