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वि० स्था० पू० ॥
(६)
नरिया ॥ सुमत धरिया सदा चरण परिया जना । तारिया ज्ञान गंभीर दरिया न० ॥ ३॥ तृणमणी सम गिणे चतुर बिध धर्मना परम उपदेश दायक उदारा ॥ बहिरज्यंतर निदा वार बिधथति कठिन। तपत सकल जीउ अन्नयकारा न०॥४॥ वलि श्ठा वीस मनहरण गुण लबधि निधि । सातमें बछ गुण ठाण वसिया । सप्त जय वारका प्रवरजिन आगन्या । धारका स्वगण परिण मनरसिया न०॥५॥ पंच परमाद कल्लोल ता कुल महा । पार संसार सागर जिहाजा बिविध नव वामि युत शील व्रत के धरा मधर निज वाणि रंजित समाजान०॥६॥ कोकि नव सहस थुणिये महामुनि वरा । वी रत्नद्ध जिम करिय साधु सेवा ॥ परम पद जिन हर्षसुं ग्रह्योतसु तणा । चरण कजयुग नमें सकल देवा न० ॥ ७ ॥
॥ काव्य ॥ __ संतजिया सेस परीसहाणं । निस्सेस जीवाण दया गिहाणं ॥ सन्लाण पजायतरू वणाणं । नमो नमो होय तवोधणाणं ॥८॥
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