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॥बोटी पदनव०॥
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लहें चित्तमां जेम ध्वांत प्रदीपें ॥१॥
॥ ढाल ॥ नद अन्नद विचारणा पेय अपेय निर धारो रे । कृत्य अकृत्य ने जांणिये ज्ञान महा जयकारो रे॥१॥ ज्ञान निरंतर बंदिये क०। शां० ॥ ज्ञान विना जयणानही । जयणा बिन नहि धर्मो रे । धर्म बिना शिव सुख नही । तेविण नमिठैनौ रे ज्ञा० ॥१॥ पां चप्रकार, जेहना । नेदइकावन तासोरे ॥ जाणीने पूजेसदा। तेलहै केवलखासोरे॥२॥
॥ श्लोक ॥ अशेषव्यपर्याय । रूपमेवा वनासकं ॥ ज्ञानमाग्नेय पत्रस्थं। पूजयामि हितावहं १॥ इतिज्ञान पद पूजा ७॥
॥ अथ चारित पद पूजा ॥
॥दोहा॥ शष्टमपद चारित्रनो । पूजोधरी उमेद ॥ पूजत शनुनव रसमिलें। पातिक होयउद
॥बंद ॥ श्राराहिया खंमिय सकियस्स । नमो २ सं
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