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॥ शारती॥
॥ अथ यद यक्षणी आरती ॥
जय २ जिन पद सेवन कारक जय २ जगदंवे आं ० अह निशि तुऊ पद समरन कारन दिल घिच ध्यान धरे ज० १ नवि जन वंबित पूरन सुरतस चक स्वरि अंबे ज०३ वसु नुज शोनित कनक च्छवि तनु सेवित सुरवंदे ज० ४ पंचानन तिम खगप ति वाहन शयुध हस्तधरे ज० ५ रिधि वृ छिनित प्रति सेवक थापें शानद संघ घरे ज०६ इति चक्कवरी जीकी आरती ॥
जय जय रिषन पदांबुज सेवक जय २ जखराया नविजन सुखदाया ज० । कामग वी जिम बंछित दायक कंचन बरण सुहाया ज० ॥ १ ॥ संकठ विकट निवारण कारण वर कुंजर चढिशाया ज० ॥२॥ उदधिनु
करि शोजित तनु छवि गुणनिधि गोमुख सुर राया ज० ॥३॥ शारत हरवा करत भारती श्रीसंघ चितऊल साया ज०॥४॥
॥ इति यद राज शरती ॥
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