________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 30 सर्वपर्यायमुक्तानि न स्युर्द्रव्याणि जातुचित् / सद्वियुक्ताश्च पर्यायाः शशशृंगोच्चतादिवत् // 19 // न सन्ति सर्वपर्यायमुक्तानि द्रव्याणि सर्वपर्यायनिर्मुक्तत्वाच्छशशृङ्गवत् / न सन्त्येकान्तपर्यायाः सर्वथा द्रव्यमुक्तत्वाच्छशशृङ्गोच्चत्वादिवत्। ततो न तद्विषयत्वं मतिश्रुतयोः शङ्कनीयं प्रतीतिविरोधात् // नाशेषपर्ययाक्रान्ततनूनि च चकासति / द्रव्याणि प्रकृतज्ञाने तथा योग्यत्वहानितः // 20 // यदि बौद्ध यों कहे कि झूठे व्यवहार से ही संवृत्ति और असंवृत्ति का विभाग मान लिया.जाएगा है तो वह संवृत्ति तो स्वयं अनिश्चित है अतः उस अनिश्चित संवृत्ति से किसी पदार्थ का निश्चय करने वाला बौद्ध उन्मत्त कैसे नहीं है? अर्थात् अनिश्चित पदार्थ से किसी वस्तु का निश्चय करने वाला पुरुष उन्मत्त ही कहा जाएगा। बहुत दूर भी जाकर यह बौद्ध स्वयं किसी का निश्चय करता हुआ, और दूसरे प्रतिपाद्य को यदि अन्य पदार्थ का निश्चय कराना मानेगा तब तो वेद्यवेदकभाव और प्रतिपाद्यप्रतिपादक भावको वास्तविकरूप से स्वीकार करने के लिए योग्य हो ही जाता है। अर्थात् स्वयं निश्चय करने से वेद्यवेदकभाव और परपुरुष को निश्चय कराने से प्रतिपाद्यप्रतिपादकभाव हो ही जाता है। अन्यथा किसी निश्चित प्रमाण या वाक्य से अनिश्चित का निश्चय कराना नहीं मानोगे अथवा निश्चित किये गए तत्त्व से अन्य का निश्चय करना मानते हुए भी वेद्यवेदकभाव और प्रतिपाद्यप्रतिपादकभाव को नहीं मानोगे तो उपेक्षणीयपना प्राप्त हो जाने का प्रसंग आएगा। भावार्थ - ऐसी अप्रामाणिक बात कहने वाले बौद्ध की अन्य विद्वान् कोई अपेक्षा नहीं रखेंगे। अतः प्रत्यक्ष के समान श्रुतज्ञान भी वस्तुभूत अर्थ को विषय करने वाला सिद्ध हो जाता है। क्योंकि सद्बोधपना अन्यथा (पारमार्थिक पदार्थ को विषय करना माने बिना) नहीं बन सकता है। श्रुतज्ञान का सालम्बनपना सिद्ध हो जाने पर अकेले द्रव्यों में ही मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय नियत रहेगा, क्योंकि उन द्रव्यों को ही वस्तुभूतपना है। पर्यायें तो परिकल्पित हैं यथार्थ नहीं हैं अथवा पर्यायों में ही मति श्रुतज्ञानों की विषय नियति है क्योंकि द्रव्य तो वस्तुभूत पदार्थ नहीं है। इस प्रकार मानने वाले प्रतिवादियों के प्रति आचार्य कहते हैं - वस्तुभूत द्रव्य सम्पूर्ण पर्यायों से रहित कदापि नहीं हो सकते हैं और खरगोश के सींग की ऊँचाई आदि के समान पर्यायें भी सत् द्रव्य से रहित कभी भी नहीं हो सकती हैं अर्थात् शश के सींग नहीं हैं अत: उसकी ऊँचाई आदि कुछ भी नहीं है। तथा द्रव्य के बिना केवल पर्यायें और पर्यायों के बिना द्रव्य स्थिर नहीं रहता है। पर्याय और द्रव्यों का तदात्मक पिण्ड वस्तुभूत द्रव्य है।।१९॥ ___सम्पूर्ण पर्यायों से रहित जीव आदि द्रव्य नहीं हैं, जैसे सम्पूर्ण पर्यायों से सर्वथा रहितपना होने से शश का सींग कोई वस्तु नहीं है। अतः मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में केवल द्रव्यों का या केवल पर्यायों का विषय करते हैं; ऐसी शंका करने योग्य नहीं है क्योंकि इसमें प्रमाणसिद्ध प्रतीतियों से विरोध आता है। अशेष पर्यायों से आक्रान्त शरीर वाले द्रव्य मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में प्रतिभासित नहीं होते हैं क्योंकि इस प्रकार की योग्यतारूप क्षयोपशम या क्षय का अभाव है। अर्थात् सम्पूर्ण पदार्थों के मानने के क्षयोपशम का मतिश्रुतज्ञान में अभाव है।।२०।।