________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 163 नवानां नैगमभेदानां द्वाभ्यां परापरसंग्रहाभ्यां सह वचनादष्टादश सप्तभंग्यः, परापरव्यवहाराभ्यां चाष्टादश, ऋजुसूत्रेण नव, शब्दभेदैः षड्भिः सह चतुःपंचाशत्, समभिरूढेन सह नव, एवंभूतेन च नव, इति सप्तदशोत्तर शतं। तथा संग्रहादिनयभेदानां शेषनयभेदैः सप्तभंग्यो योज्याः। एवमुत्तरनयसप्तभंग्यः पंचसप्तत्युत्तरशतं / ___नयों की मूल सप्तभंगियों के भेद हो चुके / अब नयों के उत्तर भेदों द्वारा रची गयी सप्तभंगियों को गिनाते हैं। उसी क्रम के अनुसार अर्थ पर्याय नैगम - 1, व्यंजनपर्याय नैगम - 2, अर्थव्यंजनपर्याय नैगम - 3, शुद्ध द्रव्य नैगम - 4, अशुद्धद्रव्य नैगम - 5, शुद्ध द्रव्यार्थ पर्याय नैगम - 6, अशुद्धद्रव्यार्थपर्यायनैगम - 7, शुद्धद्रव्यव्यंजन पर्याय नैगम - 8, अशुद्धद्रव्यव्यंजनपर्याय नैगम - 9 इस प्रकार नैगम के नौ भेदों का पर, अपर, इन दो प्रकार के संग्रह नयों के साथ कथन करने से अठारह सप्तभंगियाँ होजाती हैं। अर्थात्अर्थपर्याय नैगम की अपेक्षा अस्तित्व कल्पना कर परसंग्रह की अपेक्षा नास्तित्व मानते हुए दो मूलभंगों की भित्ति पर एक सप्तभंगी बना लेना। इसी प्रकार नौ नैगमों की अपेक्षा अस्तित्व मानते हुए दोनों संग्रहों से प्रतिषेध करते हुए अठारह सप्तभंगियाँ बन जाती हैं। तथा नौ नैगम के भेदों की अपेक्षा अस्तित्व मानकर पर, अपर इन दो व्यवहार नयों कर के नास्तित्व को मानते हुए दो-दो मूलभंगों से एक-एक सप्तभंगी बनाते हुए ये भी 18 सप्तभंगियाँ होगईं। तथा ऋजुसूत्र का एक ही भेद हैं। अत: नौ नैगमों से विधि की कल्पना कर और ऋजुसूत्रनय से प्रतिषेध करते हुए दो-दो मूलभंगों द्वारा ये नौ सप्तभंगियाँ हुईं। शब्दनय के काल, कारक, लिंग, संख्या, साधन, उपसर्ग ये छह भेद हैं। नैगम के नौ भेदों से अस्तित्व को मानते हुए और शब्दनय के छह भेदों से नास्तित्व की कल्पना करने से दो मूलभंगों से एक - एक सप्तभंगी को बनाकर नौ, छह, चौपन सप्तभंगियाँ बन जाती हैं। तथा नौ नैगमों से पहिले अस्तित्व भंग को साध कर और समभिरूढ़ से दूसरे नास्तित्व भंग की कल्पना कर एक-एक नैगम की अपेक्षा से विधि कल्पना कर और एवंभूत नय से निषेध कल्पना करते हुए नौ नैगम के भेदों की एवंभूत के साथ नौ सप्तभंगियाँ समझ लेनी चाहिए। इस प्रकार नैगम की 18+18+9+54+9+9=117 इस प्रकार एक सौ सत्रह उत्तर सप्तभंगियाँ होती हैं। - इस प्रकार नैगम के प्रकारों अनुसार संग्रह आदि नयों के भेदों की उत्तर-उत्तर शेष बचे हुए नयों के भेदों के साथ अस्तित्व, नास्तित्व की विवक्षा कर सप्तभंगियाँ करनी चाहिए अर्थात् - दोनों संग्रह नयों की अपेक्षा अस्तित्व को मान कर और दोनों व्यवहारनयों से नास्तित्व को मानकर दो-दो मूलभंगों के द्वारा एक-एक सप्तभंगी बनाते हुए संग्रह के पर, अपर भेदों की, व्यवहार के पर, अपर दो भेदों के साथ चार सप्तभंगियाँ हुईं। दो संग्रहों की अपेक्षा अस्तित्व को मानते हुए और ऋजुसूत्र से नास्तित्व को गढ़ कर दो मूलभंगों द्वारा सप्तभंगी को बनाते हुए पर, अपर संग्रहों की एक प्रकार, ऋजुसूत्र के साथ दो सप्तभंगियाँ हुईं। तथा दो संग्रहों की छह प्रकार के शब्द नय के साथ दो-दो मूल भंगों से सप्तभंगी बनाकर बारह सप्तभंगियाँ हुईं। तथा दो संग्रहों की एक समभिरूढ़ के साथ विधि-प्रतिषेध कल्पना करते हुए दो सप्तभंगियाँ बनाना। इसी प्रकार दो संग्रहों की अपेक्षा विधि करते हुए और एवंभूत की अपेक्षा निषेध करते हुए दो