________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 278 स क्रियावान् परिच्छिन्नो दृष्टो न च तथात्मा तस्मान्न लोष्ठवत्क्रियावानिति निष्क्रिय एवेत्यर्थः। सोऽयं साधर्म्यणोपसंहारे वैधयेण प्रत्यवस्थानात् वैधर्म्यसमः प्रतिषेधः पूर्ववद्रूषणाभासो वेदितव्यः॥ का पुनर्वैधर्म्यसमा जातिरित्याह- . वैधये॒णोपसंहारे साध्यधर्मविपर्ययात् / वैधयेणेतरेणापि प्रत्यवस्थानमिष्यते // 331 // या वैधर्म्यसमा जातिरिदं तस्या निदर्शनम् / नरो निष्क्रिय एवायं विभुत्वात्सक्रियं पुनः॥३३२॥ विभुत्वरहितं दृष्टं लोष्ठादि न तथा नरः। तस्मानिष्क्रिय इत्युक्ते प्रत्यवस्था विधीयते // 333 // वैधयेणैव सा तावत्कैश्चिन्निग्रहभीरुभिः। कर्मबंधक्रियाहेतुर्गुणादीनां समीक्षितं // 334 // जैसे कि फेंका हुआ पत्थर क्रिया के कारण संयोग, वेग, गुरुत्व गुणों का धारक होने से क्रियावान् है। इस अनुमान में वैधर्म्य के द्वारा असत् दूषण उठाया जाता है कि जो क्रियाहेतुगुण का आश्रय पत्थर है, वह क्रियावान होता हुआ अपकृष्ट परिमाणवाला परिमित देखा गया है। उस प्रकार आत्मा मध्यपरिमाण वाला नहीं है। अतः लोष्ठ के समान क्रियावान् आत्मा नहीं है; आत्मा क्रियारहित ही है, यह अर्थ प्राप्त हो जाता है। नैयायिक कहते हैं कि यह प्रत्यवस्थान भी साधर्म्य से वादी द्वारा उपसंहार किये जाने पर पुनः प्रतिवादी द्वारा वैधर्म्य करके प्रत्यवस्थान उठा देने से वैधर्म्यसम नामका प्रतिषेध है। यह भी पूर्व के समान दूषणाभास समझ लेना चाहिए। अर्थात् - जो दोष साध्य और साधन की व्याप्ति का विच्छेद नहीं कर सकता है, वह दोष नहीं है, अपितु दोषाभास है। न्यायभाष्य के अनुसार दूसरे प्रकार की वैधर्म्यसमा जाति फिर क्या है? इस प्रकार की जिज्ञासा होने पर आचार्य कहते हैं कि वादी द्वारा वैधर्म्य से पक्ष में साध्य व्याप्त हेतु का उपसंहार कर देने पर पुनः प्रतिवादी द्वारा साध्य धर्म के विपर्यय की उपपत्ति हो जाने से वैधर्म्य और उससे दूसरे हो रहे साधर्म्य से भी जो प्रत्यवस्थान दिया जाता है वह वैधर्म्यसमा जाति इष्ट की गयी है। उसका दृष्टान्त यह है कि यह आत्मा (पक्ष) क्रियारहित ही है (साध्य), क्योंकि आत्मा सर्वत्र व्यापक है (हेतु)। ___ जो भी कोई पदार्थ क्रियासहित होता है, वह व्यापक नहीं होता है। जैसे पत्थर आदि पदार्थ मध्यम परिमाण वाले अव्यापक हैं। उस प्रकार का अव्यापक आत्मा नहीं है। अत: आत्मा क्रियारहित है। इस प्रकार वादी द्वारा वैधर्म्य से उपसंहार कह चुकने पर निग्रह स्थान से भयभीत किन्हीं प्रतिवादियों के द्वारा वैधर्म्य से ही जो दूषण देना रूप क्रिया की जाती है कि आकाश द्रव्य क्रियाहेतुगुणों से रहित देखा गया है। इस प्रकार का आत्मा द्रव्य क्रियाहेतु गुणरहित नहीं है। अत: यह आत्मा क्रियारहित नहीं है, इस प्रकार की प्रतीति होती है। क्रियावान् के वैधर्म्य से आत्मा निष्क्रिय तो हो सकती है किन्तु क्रियारहित के वैधर्म्य से आत्मा क्रियावान् नहीं हो सकती। इसका नियामक वादी के पास कोई विशेष हेतु नहीं है। इस प्रकार वादी द्वारा वैधर्म्य से आत्मा के क्रियारहितपन का विभुत्व हेतु से उपसंहार कर देने पर प्रतिवादी द्वारा वैधर्म्य से आत्मा को सक्रिय साधने वाले वैधर्म्य सम का उदाहरण है। अब साधर्म्य से प्रतिवादी द्वारा प्रत्यवस्थान उठाये जाने का उदाहरण कहा जाता है कि उस ही वादी के अनुमान में यानी आत्मा क्रियारहित है व्यापक