Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 04
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

Previous | Next

Page 311
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 298 एतेन नित्यं प्रयुक्तं, न हि नित्यमप्रयत्नानंतरीयक मिति युक्तं वक्तुं , तस्य जन्माभावादिति जातिलक्षणाभावान्नेयमनुत्पत्तिसमा जातिरितिचेत् नानुत्पत्तेरहेतुभिः साधर्म्यात् पटोऽनुत्पन्नस्तन्तुभिस्तद्यथानुत्पन्नास्तंतवो न पटस्य कारणमिति / सामान्यघटयोस्तुल्य ऐंद्रियत्वे व्यवस्थिते। नित्यानित्यत्वसाधर्म्यात् संशयेन समा मता / 376 / तत्रैव साधने प्रोक्ते संशयेन स्वयं परः। प्रत्यवस्थानमाधत्तेऽपश्यन् सद्भूतदूषणम् // 377 // प्रयत्नानंतरोत्थेपि शब्दे साधर्म्यमैंद्रिये / सामान्येनास्ति नित्येन घटेन च विनाशिना // 378 // इस कथन से “जो पुरुष प्रयत्न से रहित होता है वह नित्य होता है"- इसका भी खण्डन कर दिया गया है, क्योंकि नित्य पुरुष के प्रयत्न बिना उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि नित्य पदार्थ के जन्म का अभाव है अर्थात् प्रयत्न के बिना अन्य कारणों से उत्पन्न हुए पदार्थों में ही प्रयत्नानन्तरीयकत्व (पुरुष के प्रयत्न बिना उत्पन्न होना) संभव हो सकता है। जाति के लक्षण का अभाव होने से अनुत्पत्ति समा जाति नहीं है। ऐसा भी कहना उचित नहीं है। क्योंकि उत्पत्ति के पूर्व शब्द की अनुत्पत्ति होने से हेतु रहित नित्य आकाश आदि पदार्थों के साथ साधर्म्य मिल जाने से शब्द के नित्यपने की प्राप्ति का प्रसंग इस अनुत्पत्तिसमा में प्रतिवादी द्वारा उठाया जा सकता है। अनुत्पन्न तन्तुओं के द्वारा नहीं उत्पन्न पट नित्य नहीं होता है। उसी प्रकार अनुत्पन्न तंतु पट के कारण नहीं हैं। यहाँ तक अनुत्पत्तिसमा जाति का विचार किया गया है। पर अपर सामान्य और घट दृष्टान्त का इन्द्रियज्ञान के द्वारा ग्राह्यपना तुल्य रूप से व्यवस्थित हो जाने पर नित्य और अनित्य के साधर्म्य से संशयसमा जाति नैयायिकों ने मानी है।।३७६।। उसी प्रकार वहाँ ही प्रयत्नरहित हेतु से घट के समान शब्द में अनित्यपने का शाब्द बोध हो जाने पर दूसरा प्रतिवादी स्वयं सद्भूत (समीचीन) दूषण को नहीं देखता हुआ संशय के द्वारा प्रत्यवस्थान (निर्णय) करता है कि पुरुष प्रयत्न व्यापार के बिना उत्पन्न इन्द्रिय जन्य ज्ञान ग्राह्य शब्द में नित्य माने गये घट के साथ सामान्य धर्म की अपेक्षा साधर्म्य है। भावार्थ - जिस इन्द्रिय का जो पदार्थ विषय है, उस पदार्थ में रहने वाला सामान्य और सामान्य का अभाव भी उसी इन्द्रिय का विषय होता है, अर्थात् उसी इन्द्रिय के द्वारा जाना जाता है। इस नियम के अनुसार घट और घटत्व दोनों ही चक्षु और स्पर्शन इन्द्रिय के द्वारा जाने जाते हैं। शब्द गुण और शब्दत्व जाति ये दोनों कर्ण इन्द्रिय के विषय हो जाते हैं। ___ अतः शब्द का नित्य सामान्य के साथ ऐन्द्रियकत्व साधर्म्य है अर्थात् इन्द्रियों के द्वारा ग्राह्यत्व शब्द और घट में समान है। इस प्रकार पुरुष के प्रयत्न से उत्पन्न विनाशी (अनित्य) घट के साथ समान धर्मत्व विद्यमान है॥३७७-३७८॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358