Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 04
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 349
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 336 160 74 श्लोक पृष्ठ सं. | श्लोक पृष्ठ सं. | श्लोक पृष्ठ सं. नयो नयौ नयाश्चेति 125 | निर्वर्तित शरीरादि 12 | (प) नयानां लक्षणं लक्ष्यं 126 | निःश्रेयसं परं तावत् 40 | परतोऽयमपेक्षस्यानन्वयं भाविनी संज्ञा 134 | नियमेन तयोः सम्यक् 61 | पर्यायमात्रगे नेते नर्जुसूत्रादिषु प्रोक्त- 135 | नियोगो भावनैकांतात् 90 | परमावधिनिर्णीते नवधा नैगमस्यैवं 139 नित्योर्थो निर्मतत्वादिति 85 | पर्यायेष्विति निर्देशात् नर्जुसूत्रप्रभूतार्थो निर्देश्याधिगमोपायं 121 | पंचभिर्व्यवधानं तु नयार्थेषु प्रमाणस्य 174 | निराकृत विशेषस्तु पंचषैस्समयैस्तेषां न धर्मी केवल: साध्यो 196 निराकरोति य द्रव्यं पररूप्रादितोऽशेषे न प्रतिज्ञांतरं तस्य 214 निगमस्य परित्यागः पक्षत्रितयहानिस्तु निग्रहस्थानसंख्यान- 219 निदर्शनादिबाधा च परापरेण कालेन न प्रतिज्ञाविरोधेतनिराकृतौ परेणास्य 220 परस्पराविनाभूतं ननु चाज्ञानमात्रेपि पर्यायशब्दभेदेन . 154 निर्दोष साधनोक्तौ तु नवकंबलशब्देहि पराधिगमस्तत्रनिर्वक्तव्यास्तथाशेषा न चेदं वाक्छलं युक्तं 266 पक्षसिध्यविनाभावे निषेधस्य तथोक्तस्य 317 न सर्वस्याविशेष: स्यात् 307 पंचावयवलिंगस्य नामायुरुदयापेक्षो निग्रहाय प्रकल्प्यंते ___323 पक्षसिद्धिविहीनत्वात् 205 नावधिज्ञानवृत्कर्म नैगमाप्रातिकूल्येन पराजयप्रतिष्ठान 205 नाशेषपर्ययाक्रांत नैगमव्यवहाराभ्यां पक्षत्यागात् प्रतिज्ञायाः 208 नाश्रयस्यान्यथाभाव | नैरर्थक्यं हि वर्णानां 232 | परेण साधिते स्वार्थे 212 नामादयोपि चत्वारः नैवमात्मा ततो नायं __ 279 | पक्षस्य प्रतिषेधे हि नात्रादिकल्पना युक्ता नैवोपलब्ध्यभावेन 314 | परिषद्प्रतिवादिभ्यां नात्रेदं युज्यते पूर्व- 214 | | नैताभिर्निग्रहो वादे 322 | पत्रवाक्यं स्वयंवादि 231 नाश्रयाश्रयिभावोपि 320 | नोपयोगौ सह स्याताम् 52 | पदानां क्रमनियम 234 175 . 200 161 130 206 230

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