________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 309 कारणस्योपपत्तेः स्यादुभयोः पक्षयोरपि / उपपत्तिसमा जातिः प्रयुक्ते सत्यसाधने // 410 // उभयोरपि पक्षयोः कारणस्योभयोरुपपत्तिः प्रत्येया उभयकारणोपपत्तेरुपपत्तिसम इति वचनात् / / एतदुदाहरणमाहकारणं यद्यनित्यत्वे प्रयत्नोत्थत्वमित्ययं / शब्दोऽनित्यस्तदा तस्य नित्यत्वेऽस्पर्शनास्ति तत् / 411 / ततो नित्योप्यसावस्तु साधनं नोपपद्यते। कारणस्याभ्यनुज्ञाना न नित्यः कथमन्यथा // 412 // यद्यनित्यत्वं कारणं प्रयत्नांतरीयकत्वं शब्दस्यास्तीत्यनित्यः शब्दस्तदा नित्यत्वेपि तस्य कारणमस्पर्शत्वमुपपद्यते। ततो नित्योप्यस्तु कथमनित्योन्यथा स्यादित्युभयस्य नित्यत्वस्यानित्यत्वस्य च कारणोपपत्त्या प्रत्यवस्थानमुपपत्तिसमो दूषणाभासः॥ वर्तमान काल में सिद्ध सम्पूर्ण पदार्थों का अनित्यपना सिद्ध हो जाने पर सत्त्व के द्वारा शब्द में अनित्यत्व का निषेध कैसे किया जा सकता है? प्रतिवादी को इसकी परीक्षा करनी चाहिए। सत्त्व की सिद्धि से सर्व पदार्थों के अनित्यपना सिद्ध हो जाने पर शब्द के भी अनित्यपना सिद्ध हो जाता है। अतः सर्व पदार्थों को अनित्य मानकर के भी शब्द को अनित्य नहीं मानने वाला स्वस्थ कैसे हो सकता है? यहाँ तक विशेषसमा जाति का विचार किया गया है। वादी के द्वारा समीचीन हेतु के प्रयोग से उभय पक्ष (पक्ष विपक्ष) के कारण (प्रमाण) की उत्पत्ति हो जाने से उपपत्तिसमा जाति होती है।।४१०॥ दोनों ही पक्ष-विपक्षों के कारण की दोनों वादी प्रतिवादियों के यहाँ सिद्धि हो जाना, उत्पत्तिसमा समझ लेना चाहिए। ऐसा न्याय दर्शन में निरूपण किया है। इस उत्पत्तिसमा का उदाहरण कहते हैं - शब्द के अनित्यत्व साधन में कारण प्रयत्नजन्यत्व होने से शब्द यदि अनित्य कहा जाता है तब तो उस शब्द के नित्यपने में ज्ञापक कारण स्पर्श रहितपना भी विद्यमान है, इसलिए यह शब्द नित्य भी होना चाहिए। अन्यथा (यदि स्पर्श रहित होने पर भी नित्य सिद्ध नहीं किया जायेगा तो) शब्द अनित्य सिद्ध कैसे हो सकेगा? अर्थात् वहाँ भी प्रयत्नजन्य होते हुए भी अनित्यपन का साधन नहीं बनेगा। यदि कारण के होने से शब्द का अनित्यपना सिद्ध करोगे तो स्पर्शरहितत्व कारण से शब्द नित्य क्यों नहीं सिद्ध होगा // 411412 // ____ यदि शब्द के अनित्यत्व में ज्ञापक कारण प्रयत्नानन्तरीयकपना है, इसलिए इस शब्द के अनित्यत्व है, तब तो शब्द के नित्यत्व सिद्ध करने में भी उसका कारण स्पर्शरहितत्व है। इसलिए शब्द नित्य भी होना चाहिए। अन्यथा शब्द अनित्य कैसे हो सकता है? .. इस प्रकार शब्द को नित्य और अनित्य दोनों के कारणों की उत्पत्ति हो जाने पर प्रत्यवस्थान (शंका) उठाना उत्पत्तिसमा नामक दूषणाभास है। वस्तुतः दूषण न होकर दूषण सदृश है।