________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 297 शब्दमभ्युपैति नासतो प्रयत्नानंतरीयकत्वादिधर्म इति तत्त्वस्य विशेषणमनर्थकं प्रागुत्पत्तौ इति / अपरे तु प्राहुः, प्रागुत्पत्तेः कारणाभावादित्युक्ते अर्थापत्तिसमैवेयमिति प्रागुत्पत्ते: प्रयत्नानंतरीयकत्वस्याभावादप्रयत्नानंतरीयकत्वाच्च इति कृतेऽसत्प्रत्युत्तरं ब्रूते। नायं नियमो अप्रयत्नानंतरीयकत्वं नित्यमिति तु, न हि तस्य गतिः किंचिन्नित्यमाकाशाद्येव, केषांचिदनित्यं विद्युदादि, किंचिदसदेवाकाशपुष्पादीति। एतत्तु नापरेषां युक्तमिति पश्यामः। कथमिति? यत्तावदसत्तदप्रयत्नानंतरीयकत्वं वाजन्मविशेषणत्वात् / यस्याप्रयत्नानंतरं जन्म तदप्रयत्नानंतरीयंक न चाभावो विद्यते अतो न तस्य जन्म यच्चासत् किं तस्य विशेषमस्ति। ज्ञप्ति आदि कुछ क्रिया को करने वाला होने से ज्ञापक हेतु को कारक विशेष स्वीकार करके सामान्य कारकों के समान प्रत्यवस्थान उठाना उचित नहीं है। अथवा शब्द उत्पत्ति के पूर्व प्रयत्नान्तरीयक नहीं है और उत्पत्ति धर्म वाला अनित्य भी नहीं है। इस प्रकार कहने वाले के प्रति जैनाचार्य कहते हैं कि ऐसा प्रतिवादी शब्द को अवश्य स्वीकार करता है। क्योंकि असत् (अविद्यमान) पदार्थ के प्रयत्नानंतरीयकत्व आदि धर्म नहीं हो सकते। इसलिए शब्द के प्राग् उत्पत्ति विशेषण लगाना व्यर्थ है। कोई दूसरे वादी कहते हैं कि उत्पत्ति के पूर्व ज्ञापक कारण के अभाव हो जाने से प्रत्यवस्थान देना अनुत्पत्तिसमा जाती है। ऐसा कहने पर यह अर्थापत्तिसमा नाम की जाति है। (जिस प्रकार अर्थापत्तिसमा जाति है, उसी प्रकार) उत्पत्ति के पूर्व शब्द में प्रयत्न अनन्तर का अभाव होने से नित्यत्व प्राप्त होता है। इस प्रकार प्रतिवादी जातिस्वरूप असत् (असमीचीन) प्रत्युत्तर कहता है। क्योंकि यह नियम नहीं है कि जो बिना प्रयत्न होता है वह नित्य ही होता है। अप्रयत्नान्तरीयत्व से पदार्थ के नित्यत्व की ज्ञप्ति नहीं होती है। क्योंकि कोई पदार्थ अप्रयत्नानन्तरीयकत्व होने से नित्य होते हैं जैसे आकाश किसी प्रयत्न से उत्पन्न नहीं हुआ है और नित्य है। - कोई पदार्थ पुरुष प्रयत्न से अजन्य होकर भी अनित्य है, जैसे बिजली, बादल, इन्द्रधनुष आदि नित्य नहीं हैं। कोई पुरुष प्रयत्न से अजन्य आकाशपुष्प अश्वविषाण आदि असत् हैं। इसके प्रत्युत्तर में न्याय सिद्धान्ती कहते हैं कि इस प्रकार दूसरे विद्वानों का यह कहना तो युक्तिपूर्ण नहीं है, ऐसा हम देखते हैं। प्रश्न - यह कथन युक्तिसंगत क्यों नहीं है? - उत्तर - पूर्व कथन में जो आकाशपुष्प आदि असत् पदार्थ को पुरुषप्रयत्न अजन्य कहा था वह उचित नहीं है। क्योंकि अप्रयत्नानंतरीयकत्व (पुरुष के प्रयत्न बिना उत्पन्न होना) यह विशेषण जन्म (उत्पत्ति) का है। पुरुष के प्रयत्न बिना अन्य कारण स्वरूप अप्रयत्नों के अनंतर काल में जिस पदार्थ का जन्म (उत्पाद) होता है, वह अप्रयत्नान्तरीयक माना जाता है। परन्तु तुच्छाभाव रूप असत् आकाशपुष्प आदि का उत्पाद ही नहीं है। अत: उसका अप्रयत्नानन्तरीयत्व नहीं हो सकता। आकाश पुष्प सर्वथा असत् है। उसका विशेष्य कैसे हो सकता है? विशेष्य, विशेषण भाव सत्पदार्थ का ही होता है।