Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 04
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 296
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *283 साध्यधर्मविकल्पं तु धर्मांतरविकल्पतः। प्रसंजयत इष्येत विकल्पेन समा बुधैः // 346 // क्रियाहेतुगुणोपेतं किंचिद्गुरु समीक्ष्यते। परं लघु यथा लोष्टो वायुश्चेति क्रियाश्रयं // 347 // किंचित्तदेव युज्येत यथा लोष्ठादि निष्क्रियं। किंचिन्न स्याद्यथात्मेति विशेषो वा निवेद्यताम्॥३४८॥ विशेषो विकल्पो साध्यधर्मस्य विकल्पः साध्यधर्मविकल्पस्तं धर्मांतरविकल्पात्प्रसंजयतस्तु विकल्पसमा जाति: तत्रैव साधने प्रयुक्ते परः प्रत्यवतिष्ठते। क्रियाहेतुगुणोपेतं किंचिद्गुरु दृश्यते यथा लोष्ठादि, किंचित्तु लघु समीक्ष्यते यथा वायुरिति / तथा क्रियाहेतुगुणोपेतमपि किंचित्क्रियाश्रयं युज्यते यथा लोष्ठादि, किंचित्तु निष्क्रिय यथात्मेति वावर्ण्यसमाभ्यामियं भिन्ना तत्रैवं प्रत्यवस्थानाभावात् वावर्ण्यसमयोद्देवं प्रत्यवस्थानं, यद्यात्मा क्रियावान् वर्ण्य: साध्यस्तदा लोष्ठादिरपि साध्योस्तु / अथ लोष्ठादिरवर्ण्यस्तात्माप्यवर्योस्तु, विशेषो वा वक्तव्य इति। विकल्पसमायां तु क्रियाहेतुगुणाश्रयस्य गुरुलघुविकल्पवत्सक्रियनिष्क्रियत्वविकल्पोस्त्विति प्रत्यवस्थानं / अतोसौ भिन्ना // वायु और पत्थर का हल्के, भारीपन से द्वैविध्य मानने वाले को पत्थर और आत्मा का सक्रिय, निष्क्रियपने से वैविध्य मानना स्वत:प्राप्त हो जाता है॥३४६-३४८॥ ___ विकल्पसमा जाति में स्थित विकल्प शब्द का अर्थ विशेष है। साध्यधर्म का जो विकल्प है, वह साध्य धर्म विकल्प कहा जाता है, उस साध्यधर्म विकल्प को अन्य धर्म के विकल्प से प्रसंग कर प्रत्यवस्थान उठाने वाले प्रतिवादी के विकल्पसमा जाति लागू हो जाती है। - जैसे वहीं आत्मा के क्रियावत्त्व को साधने के लिए हेतु का प्रयोग किये जाने पर दूसरा प्रतिवादी प्रत्यवस्थान देता है कि क्रियाहेतु गुण से युक्त कोई पदार्थ तो भारी देखा जाता है, जैसे पत्थर आदि और, क्रियाहेतु गुणों से युक्त कोई-कोई पदार्थ हल्का देखा जा रहा है जैसे वायु। उसी प्रकार क्रियाहेतुगुणों से सहित कोई पदार्थ तो क्रियावान् है, जैसे कि पत्थर आदि तथा क्रियाहेतुगुण से उपेत होता हुआ भी कोई पदार्थ क्रियारहित है, जैसे आत्मा। यह विकल्पसमा जाति हुई। यह विकल्पसमा जाति पूर्व रचित वर्ण्यसमा और अवर्ण्य समा जातियों से पृथक् ही है। क्योंकि वहाँ इस प्रकार के प्रत्यवस्थान का अभाव पाया जाता है। वर्ण्यसमा, अवर्ण्यसमा में भिन्न प्रकार का प्रत्ययस्थान है कि आत्मा क्रियावान् है, क्योंकि वर्णनीय है। इस प्रकार यदि साध्य बनाया गया है तो पत्थर आदि दृष्टान्त भी साध्य बना लेना चाहिए। अब लोष्ट आदि तो वर्णनीय नहीं हैं, तो आत्मा भी अख्यापनीय होगा। अथवा आत्मा और पत्थर में कोई विपरीतपन की विशेषता है तो उस विशेष को सबके सन्मुख कहना चाहिए, किन्तु इस विकल्प समा में तो क्रियाहेतुगुणों के अधिकरण हो रहे द्रव्यों के भारीपन, हल्कापन विकल्पों के समान क्रियासहितपन और क्रिया रहितपन विकल्प होता है। इस प्रकार प्रत्यवस्थान (प्रश्न) उठाया गया है। इस कारण से यह विकल्पसमा जाति वर्ण्यसमा से भिन्न ही है। साध्यसमा जाति फिर क्या है? ऐसी जिज्ञासा होने पर आचार्य कहते हैं -

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