Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 04
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

Previous | Next

Page 302
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 289 यथारूपं दिदृक्षूणां दीपादानं प्रतीयते। स्वयं प्रकाशमानं तु दीपं दीपांतराग्रहात् // 364 // तथा साध्यप्रसिद्ध्यर्थं दृष्टांतग्रहणं मतं / प्रज्ञातात्मनि दृष्टांते त्वफलं साधनांतरम् // 365 / / प्रतिदृष्टांतरूपेण प्रत्यवस्थानमिष्यते। प्रतिदृष्टांततुल्येति जातिस्तत्रैव साधने // 366 / / क्रियाहेतुगुणोपेतं दृष्टमाकाशमक्रियं / क्रियाहेतुर्गुणो व्योम्नि संयोगो वायुना सह // 367 / / संस्कारापेक्षणो यद्वत्संयोगस्तेन पादपे। स चायं दूषणाभासः साधनाप्रतिबंधकः // 368 / / साधकः प्रतिदृष्टांतो दृष्टांतोपि हि हेतुना। तेन तद्वचनाभावात् सदृष्टांतोस्तु हेतुकः // 369 // अन्य दीपकों का ग्रहण करना नहीं देखा गया है; उसी प्रकार अज्ञात साध्य की प्रसिद्धि के लिए दृष्टान्त का ग्रहण माना गया है। किन्तु जिस दृष्टान्त का आत्मस्वरूप सबको ज्ञात हो चुका है, उसको अन्य साधनों से साधना व्यर्थ है, यहाँ आत्मा के क्रियासहितपन साध्य की सिद्धि कराने के लिए प्रसिद्ध पत्थर को दृष्टान्त रूप से ग्रहण किया था। किन्तु फिर उस पत्थर की सिद्धि के लिए ही तो अन्य ज्ञापक हेतुओं का कथन करना आवश्यक नहीं है। वादी प्रतिवादी दोनों के समान रूप से अविवादास्पद दृष्टान्त को दृष्टान्तपना उचित है। उसके लिए अन्य हेतु उठाना निष्फल है॥३६३-३६४-३६५॥ वादी द्वारा कहे गये दृष्टान्त के प्रतिकूल दृष्टान्तस्वरूप से प्रतिवादी द्वारा जो दूषण उठाया जाता है, वह प्रतिदृष्टान्तसमा जाति कही गयी है। उस ही आत्मा के क्रियावत्त्व साधने में प्रयुक्त किये गये दृष्टान्त के प्रतिकूल दृष्टान्त से दूसरा प्रतिवादी प्रत्यवस्थान देता है कि क्रिया के हेतुभूत गुण से युक्त आकाश तो निष्क्रिय देखा गया है। उस ही के समान आत्मा भी क्रियारहित होगा। वायु के साथ आकाश का जो संयोग है, वह क्रिया का कारण गुण है। जैसे कि वेग नामक संस्कार की अपेक्षा रखता हुआ, वृक्ष में वायु का संयोग क्रिया का कारण है, उसी “वायु वनस्पतिसंयोग" के समान वायु आकाश का संयोग है। संयोग द्विष्ठ होता है। अतः आकाश के समान आत्मा क्रिया हेतु गुण के सद्भाव होने पर भी क्रियारहित है। अब सिद्धान्ती कहते हैं कि यह प्रतिवादी का कथन दूषणाभास है। क्योंकि वादी के क्रियावत्त्व साधने का कोई प्रतिबन्धक नहीं है। प्रतिदृष्टान्त को कहने वाले प्रतिवादी ने भी कोई विशेष हेतु नहीं कहा है कि मेरा प्रतिदृष्टान्त तो निष्क्रियत्व का साधक है और वादी का दृष्टान्त सक्रियत्व का साधक नहीं है। प्रतिदृष्टान्तभूत आकाश यदि निष्क्रियत्व का साधक माना जायेगा, तो वादी का पत्थर दृष्टान्त भी उस क्रिया हेतु गुणाश्रयत्व हेतु से सक्रियत्व का साधक होगा। ऐसी दशा में प्रतिदृष्टान्त के निरूपण का अभाव हो जाने से वह पत्थर दृष्टान्त ही हेतुरहित हो जायेगा। अर्थात्-प्रतिदृष्टान्त जैसे हेतु के बिना ही स्वपक्ष का साधक है, अन्यथा अनवस्था होगी, वैसे दृष्टान्त पत्थर भी क्रियावत्त्व का स्वतः साधक है। अत: वह पत्थर ही प्रतिवादी का भी दृष्टान्त हो सकता है और आत्मा के क्रियावत्त्व का स्वतः साधक है। अत: यह प्रतिदृष्टान्तसमा जाति असमीचीन दूषण है॥३६६-३६७-३६८-३६९ //

Loading...

Page Navigation
1 ... 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358