Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 04
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

Previous | Next

Page 257
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 244 स्ववचनविरोधश्च / स्वयमुद्देशलक्षणपरीक्षावचनानां पुनरुक्तानां प्रायेणाभ्युपगमादर्थागम्यमानस्य प्रतिज्ञादेवचनाच्च / यदप्युक्तं, विज्ञातस्य परिषदा त्रिभिरभिहितस्याप्रत्युच्चारणमननुभाषणं निग्रहस्थानमिति तदनूद्य विचारयन्नाह- . त्रिदिनोदितस्यापि विज्ञातस्यापि संपदा / अप्रत्युच्चारणं प्राह परस्याननुभाषणम् // 234 // तदेतदुत्तरविषयापरिज्ञानान्निग्रहस्थानमप्रत्युच्चारयतो दूषणवचनविरोधात् / तत्रेदं विचार्यते, किं सर्वस्य वादिनोक्तस्याननुच्चारणं किं वा यन्नांतरीयका साध्यसिद्धिरभिमता तस्य साधनवाक्यस्याननुच्चारणमिति॥ यन्नांतरीयका सिद्धिः साध्यस्य तदभाषणं / परस्य कथ्यते कैश्चित् सर्वथाननुभाषणं // 235 // प्रागुपन्यस्य निःशेषं परोपन्यस्तमंजसा। प्रत्येकं दूषणे वाच्ये पुनरुच्चार्यते यदि॥२३६।। . और परीक्षा के पुनरुक्त वचनों को प्रायः करके बाहुल्य से स्वीकार किया है। जैसे शब्द के प्रयोग बिना ही गम्यमान (जाने गये) प्रतिज्ञा, दृष्टान्त आदि का वचनों के द्वारा निरूपण किया है। भावार्थ - नाममात्र कथन को उद्देश कहते हैं। असाधारण धर्म के कथन को लक्षण कहते हैं। विरुद्ध नाना युक्तियों की प्रबलता और दुर्बलता का निर्णय करने के लिए प्रवर्त्तमान विचार को परीक्षा कहते हैं। प्रमाण, प्रमेय, संशय आदि सोलह पदार्थों का उद्देश किया है। पुन: उनके लक्षण या भेदों को कहा है। पश्चात् उनकी परीक्षा की गई है। इससे सिद्ध होता है कि पुनरुक्त नामक निग्रहस्थान उचित नहीं है। नैयायिक ने जो यह कहा था कि सभासद के द्वारा विशेष रूप से ज्ञात तथा वादी के द्वारा तीन बार कथित वाक्य अर्थ का प्रतिवादी के द्वारा प्रत्युत्तर में पुन: उच्चारण नहीं करना (उसका खण्डन नहीं करना) अननुभाषण नामक निग्रहस्थान है। उसका विचार करते हुए विद्यानन्द आचार्य कहते हैं - ___ वादी के द्वारा तीन बार कथित और सभासदों के द्वारा विज्ञात पदार्थ का प्रतिवादी के द्वारा प्रत्युत्तर रूप से उच्चारण नहीं करने को प्रतिवादी का अननुभाषण नामक निग्रहस्थान कहा गया है॥२३४॥ तथा, प्रतिवादी को उत्तर विषयक परिज्ञान नहीं होने से प्रतिवादी का अननुभाषण नामक निग्रह स्थान माना गया है। यदि प्रतिवादी कुछ भी प्रत्युत्तर नहीं देता है, तो प्रतिवादी के दूषण वचन का विरोध होने से यह अननुभाषण नामक निग्रहस्थान है। अब यहाँ पर विद्यानन्द आचार्य विचार करते हैं कि क्या वादी के द्वारा कथित सभी वक्तव्य का उच्चारण नहीं करना प्रतिवादी का अननुभाषण नामक निग्रहस्थान है? अथवा जिस उच्चारण के साथ साध्यसिद्धि का अविनाभाव अभीष्ट किया गया है, साध्य को साधने वाले उस वाक्य का उच्चारण नहीं करना प्रतिवादी का अननुभाषण नामक निग्रहस्थान है। कोई कहते हैं कि - जिसके उच्चारण के बिना प्रकृत साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती, (सभी प्रकार से) उनका उच्चारण नहीं करना दूसरे प्रतिवादी का अननुभाषण नामक निग्रहस्थान है।।२३५।। वादी के द्वारा कथित सभी वाक्यों का उच्चारण करना प्रतिवादी के लिए उचित समझना युक्त नहीं हैं। क्योंकि पूर्वोक्त वादी के द्वारा कथित सम्पूर्ण वाक्यों का प्रत्युच्चारण नहीं करने वाले प्रतिवादी द्वारा दूषण का वचन उठाने में कोई व्याघात नहीं है।॥२३६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358