________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 256 योर्थारोपोपपत्त्या स्याद्विघातो वचनस्य तत्। छलं सामान्यतः शक्यं नोदाहर्तुं कथंचन // 279 // विभागेनोदितस्यास्योदाहृति: स त्रिधा मतः। वाक्सामान्योपचारेषु छलानामुपवर्णनात् // 28 // अर्थस्यारोपो विकल्पः कल्पनेत्यर्थः तस्योपपत्तिः घटना तया यो वचनस्य विशेषेणाभिहितस्य विघातः प्रतिपादकादभिप्रेतादर्थात् प्रच्यावनं तच्छलमिति लक्षणीयं, 'वचनविघातोर्थविकल्पोपपत्त्या छलं' इति वचनात् / तच्च सामान्यतो लक्षणे कथमपि न शक्यमुदाहर्तुं विभागेनोक्तस्य तच्छलस्योदाहरणानि शक्यते दर्शयितुं / स च विभागस्त्रिधा मतोऽक्षपादस्य तु त्रिविधमिति वचनात्। वाक्सामान्योपचारेषु छलानां त्रयाणामेवोपवर्णनात्। वाक्छलं, सामान्यछलं, उपचारछलं चेति // तत्र किं वाक्छलमित्याहतत्राविशेषदिष्टेर्थे वक्तुराकूततोन्यथा। कल्पनार्थांतरस्येष्टं वाक्छलं छलवादिभिः // 281 // तेषामविशेषेण दिष्टे अभिहितेर्थे वक्तुराकूतादभिप्रायादन्यथा स्वाभिप्रायेणार्थांतरस्य कल्पनमारोपणं वाक्छलमिष्टं, तेषामविशेषाभिहितेथे वक्तुरभिप्रायादर्थांतरकल्पना वाक्छलं इति वचनात् // ___ वादी के द्वारा स्वीकृत अर्थ का जो विरुद्ध कल्प है अर्थात् अर्थान्तर की कल्पना है, उसकी उत्पत्ति करके वादी द्वारा कथित अर्थ का प्रतिवादी के द्वारा जो विघात है, वह उस प्रतिवादी का छल है। सामान्य रूप से उस छल का उदाहरण कैसे भी नहीं बन सकता है। परन्तु विभाग करके कथित इस छल का उदाहरण संभव हो सकता है। उन छलों का विभाग तीन प्रकार का कहा गया है- वाक् छल, सामान्य छल और उपचार छल अर्थात् छल तीन प्रकार का कहा गया है॥२७९-२८०॥ ____ वादी के अभीष्ट अर्थ का आरोप विकल्प है। इसका अर्थ है अर्थान्तर की कल्पना करना। उस आरोप की उत्पत्ति (घटना) के द्वारा वादी के विशेषण (अभिप्राय पूर्वक) से कथित वचन का विघात कर देना, प्रतिपादक अभिप्रेत अर्थ से प्रच्युत करा देना छल का लक्षण है। “अर्थ के विकल्प की उत्पत्ति से वचन विघात करना छल है" ऐसा गौतम सूत्र में कहा है। सामान्यतः छल का उदाहरण नहीं दे सकते हैं परन्तु विभाग करके कह दिये गये उस छल के उदाहरण दिखलाये जा सकते हैं। और वह विभाग तो अक्षपाद गौतम के यहाँ तीन प्रकार का माना गया है। इस प्रकार गौतम सूत्र में कहा गया है। “तत् त्रिविधं वाक्छलं सामान्यछलमुपचारछलं च” इस कथन से वाक्, सामान्य, उपचार-इन भेदों में तीन प्रकार के छलों का ही वर्णन किया गया है। वाक्छल, सामान्य छल और उपचार छल इस प्रकार छल के तीन विभाग उन तीन छलों में पहिला वाक्छल क्या है? इसका लक्षण कहते हैं - "अविशेषाभिहितेऽर्थे वक्तुरभिप्रायादर्थान्तरकल्पना वाक्छलं" - अविशेष रूप से वक्ता द्वारा कहे गये अर्थ में वक्ता के अभिप्राय से दूसरे अर्थान्तर की कल्पना करना और कल्पना कर उस दूसरे अर्थ का असम्भव दिखाकर निषेध करना छलवादी नैयायिकों ने छल का लक्षण स्थित किया है। जिनका स्वभाव छलपूर्वक कथन करने का हो गया है, उनको इस प्रकार छल का लक्षण करना शोभित होता है॥२८१॥ सामान्य रूप से अभिहित किये गये अर्थ में वक्ता के अभिप्राय से अपने अभिप्राय से दूसरे प्रकार अर्थान्तर की कल्पना करना, अर्थात् वक्ता के ऊपर विपरीत आरोप धरना उन नैयायिकों के यहाँ वाक्छल अभीष्ट किया गया है। उनके यहाँ गौतम सूत्र में इस प्रकार कहा गया है कि विशेष रूपों को उठाकर आक्षेपों