________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 127 ननु च गुणविषयो गुणार्थिकोपि तृतीयो वक्तव्य इत्यत्राहगुणः पर्याय एवात्र सहभावी विभावितः। इति तद्रोचरो नान्यस्तृतीयोस्ति गुणार्थिकः॥८॥ पर्यायो हि द्विविधः, क्रमभावी सहभावी च। द्रव्यमपि द्विविधं शुद्धमशुद्धं च। तत्र संक्षेपशब्दवचने द्वित्वमेव युज्यते, पर्यायशब्देन पर्यायसामान्यस्य स्वव्यक्तिव्यापिनोभिधानात् / द्रव्यशब्देन च द्रव्यसामान्यस्य स्वशक्तिव्यापिनः कथनात्। ततो न गुणः सहभावी पर्यायस्तृतीयः शुद्धद्रव्यवत्। संक्षेपाविवक्षायां तु उन द्रव्य और पर्यायों की अपेक्षा से किया गया नय शब्द का निर्वचन तो नय के दोनों विशेष लक्षणों को प्रकाशित कर रहा है अर्थात् दो विषयों की अपेक्षा दो ज्ञापक विषयी निर्णीत किये जाते हैं। प्रश्न - वस्तु के अंश-द्रव्य, गुण और पर्याय, तीन सुने जाते हैं। अत: द्रव्य को विषय करने वाला द्रव्यार्थिक नय है और पर्याय अंश को जानने वाला पर्यायार्थिक नय है। उसी प्रकार नित्य गुणों को विषय करने वाला तीसरा नय गुणार्थिक भी यहाँ कहना चाहिए। इस प्रकार प्रश्न होने पर आचार्य उत्तर देते हैं - गुणार्थिक नय पृथक् नहीं है। क्योंकि पर्यायार्थिक में उसका अन्तर्भाव हो जाता है। पर्याय का सिद्धान्त लक्षण ‘अंशकल्पनं पर्याय:' है। वस्तु के सद्भूत अंशों की कल्पना करना पर्याय है। द्रव्य के द्वारा हो रहे अनेक कार्यों को ज्ञापक हेतु मानकर कल्पित किये गये परिणामी नित्य गुण तो वस्तु के साथ रहने वाले सहभावी अंश हैं। अतः षट्स्थान पतित हानि वृद्धियों में से किसी भी एक को प्रतिक्षण प्राप्त हो रहे, अविभाग प्रतिच्छेदों को धारने वाली पर्यायों द्वारा परिणमन कर रहे रूप, रस, चेतना, सुख, अस्तित्व, वस्तुत्व, आदि गुण तो यहाँ सहभावी पर्याय स्वरूप ही हैं। इस कारण उन गुणों को विषय करने वाला भिन्न तीसरा कोई गुणार्थिक नय नहीं है।॥८॥ ___ पर्यायार्थिक नय की विषयभूत पर्यायें दो प्रकार की हैं; एक क्रमशः होने वाली बाल्य, कुमार, युवा, वृद्ध अवस्था के.समान क्रमभावी है; दूसरी, शरीर के हाथ, पाँव आदि अवयवों के समान सहभावी पर्याय है, जो कि अखण्ड द्रव्य की नित्य शक्तियाँ हैं। तथा द्रव्यार्थिक नय का विषय द्रव्य भी शुद्ध द्रव्य और अशुद्ध द्रव्य के भेद से दो प्रकार का है। धर्म, अधर्म, आकाश, काल, तो शुद्ध द्रव्य ही हैं। जीव द्रव्य में सिद्ध भगवान् और पुद्गल में परमाणु शुद्ध द्रव्य कहे जा सकते हैं। सजातीय दूसरे पुद्गल और विजातीय जीव द्रव्य के साथ बन्ध को प्राप्त घट, पट, जीवित शरीर आदि अशुद्ध पुद्गल द्रव्य हैं। तथा विजातीय पुद्गल द्रव्य के साथ बंध को प्राप्त संसारी जीव अशुद्ध जीव द्रव्य हैं। . अत: नय के संक्षेप से विशेष भेदों को कहने वाले तीसरे वार्तिक में 'संक्षेप से' ऐसा शब्द प्रयोग करने पर उस नय शब्द में द्विवचनपना ही उचित है। पर्याय शब्द से अपनी नित्य अंश गुण, क्रमभावी पर्याय, कल्पित गुण, स्वभाव, धर्म, अविभागप्रतिच्छेद इन अनेक व्यक्तियों में व्यापने वाले पर्यायसामान्य का कथन हो जाता है और द्रव्य शब्द के द्वारा अपनी नित्य, अनित्य शक्तियों के धारक शुद्ध, अशुद्ध द्रव्यों में व्यापने वाले द्रव्य सामान्य का निरूपण हो जाता है। अत: सहभावी पर्याय रूप नित्य गुण कोई तीसरा