________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 135 संग्रहे व्यवहारे वा नांतर्भाव: समीक्ष्यते। नैगमस्य तयोरेकवस्त्वंशप्रवणत्वतः॥२४॥ नर्जुसूत्रादिषु प्रोक्तहेतवो वेति षण्नयाः। संग्रहादय एवेह न वाच्याः प्रपरीक्षकैः // 25 // सप्तैते नियतं युक्ता नैगमस्य नयत्वतः। तस्य त्रिभेदव्याख्यानात् कैश्चिदुक्ता नया नव // 26 // तत्र पर्यायगस्त्रेधा नैगमो द्रव्यगो द्विधा / द्रव्यपर्यायगः प्रोक्तश्चतुर्भेदो ध्रुवं ध्रुवैः॥२७॥ नैगम कहा जाता है, तथा धर्म धर्मो दोनों को प्रधानरूप से या उभयात्मक वस्तु को ग्रहण करने वाला ज्ञान प्रमाण कहा गया है। अन्य ज्ञान जो केवल धर्म को ही या धर्मी को ही अथवा गौण प्रधान रूप से धर्म धर्मी दोनों को ही विषय करते हैं, वे प्रमाण नहीं हैं, नय हैं। इस सिद्धांत का हम विस्तार से पूर्व प्रकरणों में निवेदन कर चुके हैं। अत: नैगम नय को प्रमाणपन का प्रसंग नहीं आता है॥२२-२३ // प्रमाण से नैगम का विषय विशेष है, अत: नैगम का प्रमाण में अन्तर्भाव नहीं होता, किन्तु नैगम का संग्रहनय अथवा व्यवहारनय में तो अन्तर्भाव हो सकता है। ऐसा कहना भी समीचीन नहीं है, क्योंकि उन संग्रह और व्यवहार दोनों नयों की एक ही वस्तु अंश को जानने में तत्परता है, अर्थात् नैगम तो धर्म और धर्मी या दोनों धर्मी अथवा दोनों धर्मों को प्रधान और गौणरूप से जान लेता है। किन्तु संग्रह और व्यवहार नय तो वस्तु के एक ही अंश को विषय करते हैं। अतः इनसे नैगम का विषय अधिक है, फिर संग्रह तो सद्भूत पदार्थों का ही संग्रह करता है और नैगम सत्, असत्, सभी पदार्थों का संकल्प कर लेता है॥२४॥ विशेष - यहाँ असत् कहने से 'आकाशपुष्प' आदि असत् पदार्थों को नहीं पकड़ना, किन्तु सत् होने योग्य पदार्थ यदि संकल्पानुसार नहीं बने या नहीं बनेंगे, वे यहाँ असत् पदार्थ माने गये हैं। जैसे कि इन्द्र प्रतिमा को बनाने के लिए संकल्पित, विघ्नवश काठ नहीं लाया गया अथवा लकड़ी लाकर भी उस लकड़ी से इन्द्र प्रतिमा नहीं बना सके, ऐसी दशा में इन्द्र का वह अभिप्राय असत् पदार्थ का संकल्प कहा जाता है। ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, एवंभूत इन नयों में भी नैगम का अन्तर्भाव नहीं हो पाता है, इसका कारण कहा जा चुका है। अर्थात् ये ऋजुसूत्र आदि भी वस्तु के एक अंश को ही जानने वाले हैं, नैगम के बिना संग्रह आदि छह ही नय हैं। यह परीक्षक विद्वानों को यहाँ नहीं कहना चाहिए अर्थात् सबसे पहिले नैगमनय का मानना अत्यावश्यक है॥२५॥ नैगम को भी नयपना होने से ये नय नियम से सात ही मानने योग्य हैं। उस नैगम के तीन भेद रूप व्याख्यान कर देने से किन्हीं विद्वानों ने नौ नय कहे हैं अर्थात् पर्याय नैगम, द्रव्य नैगम और द्रव्य पर्यायनैगमइस प्रकार नैगम के तीन भेद तथा संग्रह आदि छह भेद-इस प्रकार नय नौ प्रकार का अन्य ग्रन्थों में कहा गया है।॥२६॥ उन नैगम के भेदों में पर्यायों को प्राप्त नैगम तीन प्रकार का है, और दूसरा द्रव्य को प्राप्त नैगम दो भेद वाला है। तथा द्रव्य और पर्याय को विषय करने वाला तीसरा नैगम ध्रुवज्ञानी पुरुषों के द्वारा निश्चित रूप से चार भेद वाला कहा गया है। अर्थात् पर्यायनैगम के अर्थपर्यायनैगम, व्यंजनपर्यायनैगम,