________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 155 चाभिन्नमर्थं शब्दो मन्यते कारकादिभेदादेवार्थभेदाभिमननात्। समभिरूढः पुन: पर्यायभेदेपि भिन्नार्थानभिप्रैति / / कथं? इन्द्रः पुरन्दरः शक्र इत्याद्या भिन्नगोचराः / शब्दा विभिन्नशब्दत्वाद्वाजिवारणशब्दवत् // 77 // ननु चात्र भिन्नार्थत्वे साध्ये विभिन्नशब्दत्वहेतोरन्यथानुपपत्तिरसिद्धेति न मंतव्यं, साध्यनिवृत्ती साधननिवृत्तेरत्र भावात्। भिन्नार्थत्वं हि व्यापकं वाजिवारणशब्दयोर्विभिन्नयोरस्ति गोशब्दे वाभिन्नेपि तदस्ति का भेद नहीं होने से शब्दनय दोनों का एक ही अर्थ मानता है। तथा किया जाता है, विधान किया जाता है इन दोनों का अर्थ एक है, शब्दनय की अपेक्षा तो करता है, और विधान करता है दोनों का अर्थ एक ही है। पुल्लिंग पुष्य और तिष्य का एक ही पुष्य नक्षत्र अर्थ है। स्त्रीलिंग तारका और उडु का सामान्य नक्षत्र अर्थ अभिन्न है। स्त्रीलिंग अप् और वार शब्द का एक ही जल अर्थ है। नपुंसकलिंग अम्भस् और सलिल शब्दों का वही पानी एक अर्थ है। - इत्यादि पर्यायों के भेद होने पर भी शब्दनय तो अभिन्न अर्थों को मान रहा है क्योंकि शब्द नय कारक आदि के भेद होने पर ही अर्थभेद को स्वीकार करता है, परन्तु यह समभिरूढ़ नय पर्यायवाची शब्दों का भेद होने पर भी भिन्न-भिन्न अर्थों को चाहता है। अर्थात् विश्वदृश्वा का अर्थ पृथक् है और सर्वदृश्वा का अर्थ पृथक् है; सर्व कहने से कुछ भी शेष नहीं रहता है। तथा करोति और विदधाति का अर्थ अलग है। असाधारण कार्य को करने में 'विदधाति' आता है और साधारण कार्य के करने में करोति। अम्भस् और सलिल का अर्थ भी भिन्न-भिन्न जल है। ये सब कैसे भिन्न हैं? इस बात को स्वयं ग्रन्थकार वार्तिक द्वारा प्रतिपादन करते हैं। ___ सौधर्म इन्द्र के वाचक इन्द्र, पुरन्दर, शक्र, शचीपति, सहस्राक्ष इत्यादि शब्द (पक्ष) भिन्न-भिन्न अर्थ को विषय करते हैं। (साध्य) विविध प्रकार के भिन्न शब्द होने से (हेतु) जैसे कि पक्षी या घोड़े को कहने वाला 'वाजि' शब्द और हाथी को कहने वाला न्यारा ‘वारण' शब्द भिन्न-भिन्न अर्थों को कह रहा है (अन्वयदृष्टान्त)। अर्थात् - शब्दभेद है, तो अर्थभेद अवश्य होना चाहिए। पर्यायवाची शब्द पृथक्पृथक् अर्थों में आरूढ़ हैं; अनेक प्रकार की ऋद्धि, सम्पत्ति, विभूति, देवांगनायें आदि का उत्कट ऐश्वर्य होने से यह सौधर्म नाम का जीव इन्द्र कहलाता है। तथा पौराणिक मत अनुसार किसी नगरी का विदारण करने से वही जीव पुरन्दर कहा जाता है। तथा जम्बूद्वीप को उलटने की शक्ति धारण करने से वही जीव 'शक' कहा जाता है और इन्द्राणी का स्वामी होने से शचीपति कहा गया है॥७७॥ .. शंका - इस अनुमान प्रयोग में भिन्न-भिन्न अर्थपने को साध्य करने पर विभिन्न शब्दपन हेतु की अपने साध्य के साथ अन्यथानुपपत्ति असिद्ध है यानी साध्य के नहीं रहने पर हेतु के नहीं रहने रूप व्याप्ति नहीं है। समाधान - आचार्य कहते हैं कि ऐसा नहीं मानना चाहिए। क्योंकि साध्य की निवृत्ति होने पर साधन की निवृत्ति हो जाने का यहाँ सद्भाव है। विशेष-स्वरूप से भिन्न वाजि (घोड़ा) और वारण (हाथी) शब्दों में व्यापक भिन्न-भिन्न अर्थपना साध्य है।