________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक* 125 कुत एवमत: सूत्राल्लक्ष्यत इत्याहनयो नयौ नयाश्चेति वाक्यभेदेन योजिताः। नैगमादय इत्येवं सर्वसंख्याभिसूचनात् // 5 // नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूद्वैवंभूता नया: इत्यत्र नय इत्येकं वाक्यं, ते नयौ द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिको इति द्वितीयमेते नया: सप्तेति तृतीयं, पुनरपि ते नयाः संख्याता शब्दत इति चतुर्थं / संक्षेपपरायां वाक्प्रवृत्तौ यौगपद्याश्रयणात्। नयश्च नयौ च नयाश्च नया इत्येकशेषस्य स्वाभाविकस्याभिधाने दर्शनात्।। सूत्र के द्वारा इस प्रकार सामान्य संख्या, संक्षेप से भेद, विशेष स्वरूप से विकल्प और अत्यन्त विस्तार से नयों के विकल्प-इस प्रकार की सूचना किस प्रकार जानी जा सकती है? इस प्रकार शिष्य की जिज्ञासा होने पर श्री विद्यानन्द आचार्य कहते हैं __इस सूत्र में वाक्यों :- पदों के भेद करके एक नय, दो नय और बहुत से नय इस प्रकार एकशेष द्वारा योजना कर दी गयी है। . .. इस प्रकार नैगम आदि सात नयों के साथ 'नयः' इस एक वचन का सामानाधिकरण्य करने से सामान्य संख्या एक का बोध हो जाता है और 'नयों' के साथ अन्वय कर देने से संक्षेप से दो भेद वाले नय हो जाते हैं। तथा 'नया:' के साथ एकार्थ कर देने से विस्तार और प्रति विस्तार से नयों के भेद जान लिये जाते हैं। इस प्रकार इस सूत्र द्वारा ही चारों ओर से सम्पूर्ण संख्याओं की सूचना कर दी गई है। सदृश अर्थ को रखते हुए समान रूप वाले पदों का एक विभक्ति में एक ही रूप अवशिष्ट रह जाता है। 'नया:'यह शब्द एक नय, दो नय, बहुत नय इन अर्थों का स्वभाव से ही प्रतिपादन करता है।५।। नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़, एवंभूत, ये सात नय हैं। इस प्रकार एक वचन लगाकर एक वाक्य तो यह है कि नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़, एवंभूत ये सातों एक नय स्वरूप हैं और दूसरा वाक्य 'नयौ' लगाकर है कि नैगम आदि सातों नय द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक भेद से दो प्रकार के हैं। तथा ये सातों बहुत नयों स्वरूप हैं। यह तीसरा वाक्य है। फिर भी शब्दों की अपेक्षा से वे नैगम आदि संख्याते नय हैं। यह चतुर्थ वाक्य भी सूत्र का है। सूत्रकार के वचनों की प्रवृत्ति संक्षेप से कथन करने में तत्पर रही है। अतः युगपत् चारों वाक्यों के कथन करने का आश्रय कर लेने से चार वाक्यों के स्थान पर एक ही सूत्रवाक्य रच दिया गया है। चार वाक्यों के बदले में एक वाक्य बनाना व्याकरण शास्त्र के प्रतिकूल नहीं है। किन्तु अनुकूल है। एक नय, दो नय और बहुत नय / इस प्रकार द्वन्द्व समास करने पर 'नयाः' - यह एक पद बन जाता है। अनेक समान अर्थक पदों के होने पर शब्द स्वभाव से ही प्राप्त हुए एकशेष का कथन करना शब्दों में देखा जाता है। तथा किन्हीं विद्वानों के मत अनुसार एक नय, बहुत नय, इस प्रकार अर्थ की विवक्षा होने पर 'नयाः' ऐसा पूर्व में ही कथन का उच्चारण दीख रहा है। अत: कोई विरोध नहीं आता है।