________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 57 तस्य तत्स्मृतयः किन्न सह स्युरविशेषतः। तत्र तादृक्षसंवित्तेः कदाचित्कस्यचित्क्वचित् / 16 / / सर्वस्य सर्वदात्वे तद्रसादिज्ञानपंचकम् / सहोपजायते नैव स्मृतिवत्तत्क्रमेक्षणात् // 17 // क्रमजन्म क्वचिद् दृष्ट्वा स्मृतीनामनुमीयते। सर्वत्र क्रमभावित्वं यद्यन्यत्रापि तत्समं // 18 // पंचभिर्व्यवधानं तु शष्कुलीभक्षणादिषु। रसादिवेदनेषु स्याद्यथा तद्वत्स्मृतिष्वपि // 19 // लघुवृत्तेर्न विच्छेदः स्मृतीनामुपलक्ष्यते / यथा तथैव रूपादिज्ञानानामिति मन्यताम् // 20 // असंख्यातैः क्षणैः पद्मपत्रद्वितयभेदनम् / विच्छिन्नं सकृदाभाति येषां भ्रान्तैः कुतश्चन // 21 // रूप, गन्ध, स्पर्श, शब्द, रस ये पाँच ज्ञान क्रम से होते हैं। शीघ्र - शीघ्र प्रवृत्ति हो जाने से संस्कारवश आतुर प्राणी युगपत् कह देता है॥१५-१६-१७॥ ___ रूप आदि के ज्ञानों की उत्पत्ति को मान लेते हैं, किन्तु उनकी स्मृतियाँ क्रम से ही मानी जाती हैं। स्मृतियों को क्रम से उत्पन्न हुई देखकर सभी स्थलों पर स्मृतियों के क्रम से होने का अनुमान कर लिया जाता है। आचार्य कहते हैं कि यदि इस प्रकार स्मृतियों का होना क्रमभावी माना जायेगा तब तो सभी रूप आदिक पाँच अन्य ज्ञानों में भी वह क्रम से उत्पन्न होना समान है। स्मृति और अनुभवों के क्रम से उत्पाद होने में कोई अन्तर नहीं है। अत: ज्ञानों को भी क्रम मानना चाहिए // 18 // .. जिस प्रकार पूड़ीभक्षण आदि के काल में हुई उनकी स्मृतियों में पाँच के द्वारा व्यवधान पड़ जाता है, उन्हीं के समान कचौड़ी भक्षण आदि में हुए रस, गन्ध आदि के ज्ञानों में भी पाँचों के द्वारा व्यवधान पड़ जाएगा। अतः ज्ञानों में काल कृत पाँच व्यवधान पड़ जाने से ही पाँच ज्ञानपना व्यवस्थित है॥१९॥ ____ शीघ्र-शीघ्र लाघव से प्रवृत्ति हो जाने के कारण स्मृतियों का मध्यवर्ती अन्तराल जिस प्रकार नहीं दीख पड़ता है, उसी प्रकार कचौड़ी भक्षण आदि में रूप, रस आदि के पाँच ज्ञानों का व्यवधान नहीं दीख रहा है अर्थात् - स्मृतियों के समान ज्ञानों में भी मध्यवर्ती अन्तराल पड़ रहा है। पाँचों ज्ञान एक साथ नहीं होते हैं, क्रम से ही उत्पन्न होते हैं।॥२०॥ कमल के पत्तों की गड्डी को सूचि द्वारा भेद करना असंख्यात समयों से व्यवहित होने पर भी किसी कारण से भ्रान्तिवश यहाँ पद्म पत्रों का भिदना एक समय में दीख रहा है, उन विद्वानों के यहाँ रूप, रस आदि का ज्ञान पाँच समयों से व्यवहित होने पर भी विशेष भ्रम से अव्यवहित सरीखा दीख रहा है, ऐसा क्यों नहीं माना जाता है? __भावार्थ - कमल के दश पत्रों को छेदने में तो जो विद्वान् नौ समयों का व्यवधान मानते हैं उनको रूप आदि के ज्ञानों में व्यवधान मानना अनिवार्य होगा। वस्तुत: जैनसिद्धान्तानुसार दश पत्र क्या करोड़ों तर ऊपर रखे हुए पत्रों को एक ही समय में सुई आदि से छेदा जा सकता है। एक समय में सैकड़ों योजन तक पदार्थों की गति मानी गई है। एक ही समय में पहले ऊपर के पत्ते का भेदना और पश्चात् नीचे के पत्ते का छिदना हो जाता है। किन्तु रूप आदि का ज्ञान तो पूरा एक-एक समय में ही होगा। पाँच ज्ञान न्यून से