________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 84 पक्षत्रितयहानिस्तु यस्यानैकान्तिको मतः। केवलव्यतिरेकादिस्तस्यानैकान्तिकः कथं // 57 // व्यक्तात्मनां हि भेदानां परिमाणादिसाधनम् / एककारणपूर्वत्वे केवलव्यतिरेकिनः // 58 // कारणत्रयपूर्वत्वात्कार्येणानन्वयागते। पुरुषैर्व्यभिचारीष्टं प्रधानपुरुषैरपि // 59 // विना सपक्षसत्त्वेन गमकं यस्य साधनम् / अन्यथानुपपन्नत्वात्तस्य साधारणो मतः॥६०॥ साध्ये च तदभावे च वर्तमानो विनिश्चितः। संशीत्याक्रान्तदेहो वा हेतुः कार्यैकदेशतः॥६१॥ तत्र कायेन निर्णीतस्तावत्साध्यविपक्षयोः। यथा द्रव्यंनभः सत्त्वादित्यादिः कश्चिदीरितः॥१२॥ अन्वयदृष्टान्त के बिना भी सद्धेतु हो सकते हैं। तभी तो नव्य नैयायिकों ने इसको हेत्वाभास नहीं माना है। सम्पूर्ण वस्तुओं में परिणामीपन को साध्य करने पर दिये गये प्रमयेत्व, सत्त्व आदि हेतु भी कोई अनुपसंहारी हेत्वाभास नहीं है। उनका भी समीचीन हेतु या अनैकान्तिक हेत्वाभास में अन्तर्भाव हो जाता है। यह निर्णीतरूप से व्याख्यान कर दिया गया है - ऐसा समझ लेना चाहिए। साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध हो जाना ही सद्धेतु का प्राण है।।५५-५६॥ जिस दार्शनिक के यहाँ पक्ष, सपक्ष, विपक्ष तीनों में ही हेतु की हानि (नहीं रहना) अनैकान्तिक का लक्षण माना गया है, उस दार्शनिक के केवलव्यतिरेक या केवलान्वय को धारने वाले हेतु अनैकान्तिक कैसे हो सकेंगे ? सांख्य में ग्यारह इन्द्रियों और पंचभूत इन व्यक्तस्वरूप पदार्थों का प्रकृतिस्वरूप एक कारण से अभिव्यज्यपना साधने के लिए दिया गया है। भेदानां परिमाण, भेदानां समन्वय आदि हेतु कहे हैं। उनका समवायी, असमवायी, निमित्त, इन तीन कारणों के द्वारा पूर्वकपना होने से कार्य के साथ अन्वयरहितपना प्राप्त हो जाता है। अत: वे हेतु तुम्हारे यहाँ केवलव्यतिरेकी माने गये हैं। किन्तु वे हेतु पुरुषद्वारा तथा प्रकृति और आत्मा के द्वारा भी व्यभिचारी इष्ट किये गये हैं। अत: अनैकान्तिक - का पूर्वोक्त लक्षण ठीक नहीं है॥५७-५८-५९॥ सपक्ष यानी अन्वयदृष्टान्त में विद्यमान रहने के बिना भी हेतु जिस स्याद्वादी के यहाँ मात्र अन्यथानुपपत्ति नामका गुण होने से साध्य का ज्ञापक मान लिया गया है, उसके यहाँ साध्य के होने पर और विपक्ष में उस साध्य का अभाव होने पर रहने वाला हेतु साधारण नामका हेत्वाभास विशेषरूप से निश्चित किया गया है। अथवा पक्ष में साध्य के रहने पर रहने वाला और साध्याभाव वाले विपक्ष में पूर्णरूप से या एक देश से रहने के संशय से आक्रान्त शरीर वाला हेतु साधारण हेत्वाभास कहा गया है॥६०-६१॥ उन साधारण हेत्वाभास के भेदों में से प्रथम साध्यवान पक्ष और साध्याभाववान् विपक्ष में पूर्णरूप से निर्णीत होकर रहने वाला कोई हेतु अनेकान्त है। जैसे - आकाश द्रव्य है, सत्त्व होने से इस अनुमान में दिया गया सत्त्व हेतु अपने पक्ष आकाश में रहता है और विपक्ष गुण या कर्म में भी वर्त रहा है अत: निश्चित व्यभिचारी है सो अनेकान्त हेत्वाभास है॥६२॥