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दिये ।
'पुरातन प्रबंध संग्रह' नाम के ग्रंथ में कहा गया है कि बौद्ध भिक्षुओं के प्रति प्रचंड क्रोध पैदा होने पर, हरिभद्रसूरि ने उपाश्रय के पीछे ही गरमागरम तैल का बहुत बड़ा भाजन तैयार करवाया और मंत्रप्रभाव से बौद्ध भिक्षु आकाशमार्ग से आकर उसमें गिरने लगे । ७०० बौद्ध भिक्षु इस प्रकार मर गये । 'प्रभावक चरित्र के अनुसार १४४० भिक्षु मर गये थे । हरिभद्रसूरि उपशान्त होते हैं :
उधर चित्रकूट में गुरुदेव जिनदत्तसूरिजी को बौद्ध भिक्षुओं के विनाश की और हरिभद्रसूरिजी के प्रचंड कषाय की बात मालुम हुई । उन्होंने हरिभद्रसूरि को शान्त करने तीन गाथाएँ देकर दो साधुओं को हरिभद्रसूरि के पास भेज दिये । तीन गाथाएँ इस प्रकार थी
गुणसेन अग्गिसम्मा- सीहाणंदा य तह पियापुत्ता ।
सिहि - जालिणीमाइ - सुआ, धण - धणसिरिमोय पड़-भज्जा ॥ १ ॥ जय विजया य सहोअर, धरणो लच्छीअ तह पड़-भज्जा । सेण-विसेणा पित्तिय- पुत्ता- जम्मम्मि सत्तम ॥ २ ॥ गुणचन्द - वाणमन्तर समराइच्च-गिरिसेण पाणोअ । एगस्स तओ मोक्खोऽणन्तो अन्नस्स संसारो ॥३॥ 'प्रभावक चरित्र ग्रंथ में ये तीन गाथाएँ मिलती हैं ।
'समरादित्य - केवली' के नौ भवों का मात्र नामनिर्देश इन तीन गाथाओं में किया गया है । अंत में कहा गया है कि एक का मोक्ष हुआ, दूसरा अनन्त संसार में भटकेगा ।
हरिभद्रसूरिजी को इस महाकथा का ज्ञान तो था ही, वे इस कथा को जानते थे, अच्छी तरह से जानते थे, परंतु जब गुरुदेव ने इस कथा का निर्देश किया, उन्होंने उस महाकथा पर चिंतन किया । क्रोध... वैर... रोष के विपाकों का चिंतन अग्निशर्मा से लगाकर गिरिसेन तक के भवों के माध्यम से किया और क्षमा... शान्ति... उपशम का चिन्तन, गुणसेन से समरादित्य तक के भवों के माध्यम से किया ।
इस चिंतनयात्रा में 'अनित्य - भावना' से लगाकर 'बोधिदुर्लभ' भावना तक बारह भावनाओं का चिंतन समाविष्ट होता है। मैत्री - प्रमोद - करुणा और माध्यस्थ्य
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शान्त सुधारस : भाग १
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