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* द्रौपदी ने पूर्वजन्म में नियाणा किया था जब वह साध्वी थी। उसने पाँच पति पाने का नियाणा किया था, इसलिए वह पाँच पांडवों की पत्नी बनी
थी। * ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने पूर्वजन्म में जब वह साधु था, उसने चक्रवर्ती का स्त्रीरत्न
पाने का नियाणा किया था ।
घोर और उग्र तपश्चर्या से, तपस्वी जो चाहे वह उसे मिल जाता है । परंतु उस की वह तपश्चर्या उसको कर्मक्षय नहीं करवाती है और मोक्षप्राप्ति नहीं करवा सकती है । वह तपस्वी संसार में भटक जाता है । श्रीकृष्ण की द्वारिका में घोषणा : ___ जब द्वैपायन ने नियाणा की बात की, तब बलराम रोषायमान हो गये। उन्होंने श्रीकृष्ण को कहा : हे बंधु, इस संन्यासी को अब मनाना-समझाना व्यर्थ है। जिन के मुख, चरण, नासिका और हाथ टेढ़े होते हैं, जिनके होंठ, दांत और नासिका स्थूल होती हैं, जिनकी इन्द्रियाँ विलक्षण होती हैं और जो हीन अंगवाले होते हैं, वे कभी शान्ति नहीं पाते हैं । इनको क्या विशेष कहना ? भैया, सर्वज्ञ भगवंत का वचन मिथ्या नहीं होनेवाला है । जो होनेवाला है, वह होगा ही। बलराम श्रीकृष्ण का हाथ पकड़कर खड़े हुए । दोनों भाई निराश होकर वापस लौटे ।
दसरे दिन श्रीकृष्ण ने द्वारिका में घोषणा करवा दी : 'सभी नागरिक धर्म में विशेष रूप से तत्पर रहें। द्वारिका में सभी लोगों को द्वैपायन ऋषि के 'नियाणे की बात मालुम हो गई थी। इसलिए नगर में भय का वातावरण फैल गया था । लोगों ने तपश्चर्या और दान-शील की आराधना सच्चे भाव से शुरू कर दी थी। भगवान नेमनाथ गिरनार पर :
उस समय भगवान नेमनाथ गिरनार पर पधारे । वहाँ देवों ने समवसरण की रचना की। श्रीकृष्ण सपरिवार, प्रभु की देशना सुनने समवसरण में गये । देशना सुनकर सभी श्रोता मोहनिद्रा त्याग कर जाग्रत बने । और यादवकुमार शांब, प्रद्युम्न, निषध, उल्मुक, सारण वगैरह ने विरक्त बनकर प्रभु के पास चारित्रधर्म स्वीकार किया, वे श्रमण-साधु बन गये । वैसे भी उनके मन में, द्वैपायन ऋषि को मारने का पश्चात्ताप भी था। उन कुमारों के कारण ही द्वैपायन ने द्वारिकादहन का नियाणा किया था न ? हालाँकि श्रीकृष्ण ने राजकुमारों को कुछ भी कहा नहीं था। परंतु
| अशरण भावना
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