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दूर जो तालवृक्ष दिखता है न ? उस वृक्ष के नीचे उसका घर है ।'
मेरा मन आश्वस्त हुआ । पत्नी की ओर कुछ विश्वास पैदा हुआ । सूर्यास्त होने पर मैं वृद्धा की झोंपड़ी से निकला । तालवृक्ष के नीचे घर में दीपक जल रहा था । मैं उधर पहुँच गया । वह घर के द्वार पर ही खड़ी थी । उसने इशारे से मेरा स्वागत किया । मैंने झोंपड़ी में प्रवेश किया। मेरे मन में विचार आया : 'कहाँ, मेरी भव्य हवेली और कहाँ यह झोंपड़ी ? हवेली छोड़कर यह औरत क्यों इस झोंपड़ी में आयी होगी ? मेरी पत्नी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खटिया पर बिठाया । पानी से मेरे पैर धोने लगी । उसकी आँखों में से अश्रुधारा बहने लगी । मुझे लगा कि उसको अपने पाप का पश्चात्ताप हो रहा है ।
इतने में झोंपड़ी के द्वार पर पल्लीपति आकर खड़ा रहा। मैं घबराया । मेरी पत्नी ने मुझे उसी खटिया के नीचे छिपा दिया । उसने पल्लीपति को उसी खटिये के ऊपर बिठाया । गरम पानी से उसके पैर धोने लगी । उसने पल्लीपति को कहा : हे नाथ, मेरा पति यदि यहाँ आये तो आप क्या करें ?' उसने कहा : 'उसको धन दूँ, वस्त्र दूँ और उसकी पत्नी देकर बिदा दूँ !' पल्लीपति की बात, मेरी पत्नी को पसंद नहीं आयी, उसने रोष किया । पल्लीपति ने हँसकर कहा : 'प्रिये, मैंने तो मजाक में बोला, वास्तव में यदि तेरा पति यहाँ आये तो उसको बाँधकर उसकी पिटाई कर दूँ। मेरी पत्नी खुश हो गई । वह बोली : 'मेरा पति इस खटिये के नीचे ही है !' पल्लीपति ने मुझे पकड़ा, एक वृक्ष के साथ बाँधा और मुझे मारा। झोंपड़ी के द्वार खुल्ले रखकर, पल्लीपति मेरी पत्नी के साथ सो गया । वहाँ कुछ देर के बाद एक कुत्ता आया । उसने मेरे पैर के बंधन का दिये । मैं मुक्त हो गया। मैं झोंपड़ी में गया । खटिये के पास तलवार पड़ी थी, मैंने उठा ली । मेरी पत्नी को जगाया, तलवार बतायी और इशारे से चलने को कह दिया । वह आगे और मैं पीछे ! हम चलते रहे । रात्रि पूर्ण हो गई । हम दोनों एक बांस के वृक्षों की जाल में छिप गये । परंतु कुछ समय में ही पल्लीपति उनके साथियों के साथ वहाँ आ पहुँचा । मैं भयभीत हो गया । मेरी पत्नी, पल्लीपति के पीछे जाकर खड़ी रह गई । पल्लीपति ने मुझसे तलवार छीन ली और मुझ पर प्रहार कर दिया। मैं भूमि पर गिर पड़ा ।
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जब मैं जगा, तो मेरे शरीर पर तलवार के अनेक प्रहार हुए थे। मुझे बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था । मैं जरा भी हलचल करने में समर्थ नहीं था । मुझे मेरी
संसार भावना
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