Book Title: Shant Sudharas Part 01
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 219
________________ पारणीयामां पोढीयो ने माता हालो गाय, खरड़ायो मल-मूत्रमां अंगुली मुख जाय, पछी भीनामांथी सूकामां सुवडाव्यो हो जिनवरिया ! ५. छोटानो मोटो थयो, रमतो धूलीमांय, पिता परणावीयो माता हरख न माय, पछी नारीनो नचाव्यो थै-थै नाच्यो हो जिनवरिया ! ६. कुटुंब - चिंता कारमी घूंट कलेजा खाय, एथी तो भली डाकणी, मनडुं मांही मुंझाय, जाणे कोशीटानो कीडो जाल गुंथायो हो जिनवरिया ! ७. दांतो ने दाढो पडी, ने नीचां ढलीयां नेण, गालोनी लाली गई ख- ख थई गई रैन, पछी डोसो थईने डगमग डगमग चाल्यो हो जिनवरिया ! ८. चार गति चोगानमा नाच्यो नाच अपार, 'न्यायसागर नाच्यो नहीं, रत्नत्रयीने आधार, पण कुमतिनो भरमाव्यो, कांइ ना समज्यो हो जिनवरिया ! ९. संसार की चार गति में परिभ्रमण : - उपाध्यायश्री विनयविजयजी, जीवात्मा क्यों और कैसे संसार में परिभ्रमण कर रहा है, वह दो श्लोकों में बता रहे हैं। : विभ्रान्तचित्तो बत बम्प्रभीति, पक्षीव रुद्धस्तनुपञ्जरेऽङगी । नुन्नो नियत्याऽतनुकर्मतन्तु-सन्दानितः सन्निहितान्तकौतुः ॥ ४ ॥ अनन्तान्पुद्गलावर्ताननन्तानन्तस्पभृत् । अनन्तशो भ्रमत्येव जीवोऽनादिभवार्णवे ॥ ५ ॥ यह बेचारा जीव, भवितव्यता से प्रेरित, भारी कर्मों की रस्सी से बँधा हुआ और काल (मौत) रूप बिलाव के पास रहा हुआ (जीव), दिशाशून्य होकर भटक रहा है। पिंजरे में आबद्ध पक्षी की तरह शरीर के पिंजरे में कैद जीवात्मा इस संसार में परिभ्रमण (जन्म-मरण) किया करता है । संसार की चार गतियों में और ८४ लाख योनियों में भटकता हुआ अनंतअनंत देह धारण करता है । अनन्त पुद्गल परावर्तकाल से, अनादि भवसंसार में, अनंत बार भ्रमण किया करता है । संसार भावना Jain Education International For Private & Personal Use Only २०३ www.jainelibrary.org

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