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का द्वैत निर्मूल नहीं हुआ था। रामस्नेह पूर्ववत् बना हुआ था । अपने अवधिज्ञान से उन्होंने देखा, श्रीराम क्या कर रहे हैं!' अवधिज्ञान के आलोक में उन्होंने श्रीराम को अणगार बने हुए देखा । कोटिशिला पर ध्यानस्थ बने हुए देखा । उनके मन में चिंता हुई कि ये यदि शुक्लध्यान में चले जायेंगे तो सर्वज्ञ - वीतराग बनकर मुक्त बन जायेंगे । मैं चाहता हूँ कि वे संसार में ही रहे... तो उनके साथ मेरा पुनः संबंध हो सके। मैं उनको अनुकूल उपसर्ग करूँ, ध्यान से विचलित करूँ, जिससे वे मृत्यु के बाद यहाँ मेरे मित्र देव बनें !'
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ऐसा सोचकर सीतेन्द्र श्रीराम - महामुनि के पास, कोटिशिला पर आये । उन्होंने वहाँ वसंतऋतु से विभूषित एक बड़ा उद्यान बना दिया ! देव थे न ? थोड़ी क्षणों में जो चाहे वह हो सकता था ! उद्यान में वृक्षों की डाली पर कोयलें कूकने लगी । मलयानिल बहने लगा । पुष्प - सुगंध से हर्षित भ्रमरगण गुंजारव करने लगा । आम्र, चंपक, गुलाब, बोरसल्ली पर नये सुगंधी पुष्प आ गये । सीतेन्द्र ने अपना सीता का रूप बना लिया । अन्य स्त्रियों के साथ राम- महामुनि के पास आ कर सीता बोलने लगी :
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'हे नाथ, मैं आपकी प्रिया सीता हूँ, आपके पास आयी हूँ । हे नाथ, उस समय मैंने आप जैसे स्नेहभरपूर पति का त्याग कर दीक्षा ले ली थी, परंतु बाद में मुझे बड़ा पश्चात्ताप हुआ था । इन विद्याधर कुमारिकाओं ने मुझे प्रार्थना की - 'आप दीक्षा छोड़ दो और पुनः श्रीराम की पट्टरानी बन जाओ। हम भी सभी कुमारिकाएँ श्रीराम की रानियाँ बन जायेंगी । इसलिए हे नाथ, आप इन विद्याधर कुमारिकाओं से शादी रचा लो, मैं भी आपके साथ पूर्ववत् स्नेह करूँगी। मैंने जो अपमान किया था, मुझे क्षमा कर दो ।'
विद्याधर कुमारिकाओं के सीतेन्द्र ने गीत-नृत्य शुरू कर दिया। परंतु श्रीराममुनि पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने न तो उद्यान की शोभा देखी, न सीता के वचन सुनें, न ही गीत-नृत्य देखा..। धर्मध्यान में से शुक्लध्यान में प्रवेश हो गया और माघमास की शुक्ला द्वादशी की रात्रि के चौथे प्रहर में महामुनि को केवलज्ञान प्रगट हो गया। वे वीतराग - सर्वज्ञ बन गये । उनकी आत्मा पूर्ण ज्ञान से, पूर्ण दर्शन से, पूर्ण शक्ति से और पूर्ण वीतरागता से उज्ज्वल बन गई । घाती कर्मों का क्षय कर, आत्मा परमात्मा बन जाती है। और इसी तरह बाकी बचे अघाती कर्मों का क्षय करके आत्मा सिद्ध-बुद्ध - मुक्त बन जाती है। अनामी और अरूपी बन जाती है ।
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शान्त सुधारस : भाग १
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