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करने की कितनी उत्कट भावना है ! वे भीतर में कितने संतुष्ट होंगे ? इसलिए तो उन्होंने पहले ही कह दिया :
'सुहं वसामो जीवामो ! 'हम सुखपूर्वक रह रहे हैं और जी रहे हैं!' बड़ी महत्त्वपूर्ण बात है यह ! आत्मभाव की मस्ती में सुखपूर्वक रहना और जीना ! और क्या चाहिए ?
इन्द्र और नमि राजर्षि का संवाद, आज यही पर ही पूर्ण करते हैं । अभी कुछ प्रश्न- उत्तर शेष हैं, कल बताऊँगा । आज बस, इतना ही ।
एकत्व - भावना
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